’12th फेल, हारा वही जो लड़ा नहीं ‘ ये किताब अनुराग पाठक ने अपने साथी मनोज शर्मा के ऊपर लिखी है। जैसा की हम जानते है, हर हस्ती की कहानी संघर्ष के अलग-अलग पायदान को बयां कर प्रेरित करती है। महाराष्ट्र कैडर से IPS मनोज शर्मा की कहानी इस देश के हर युवा के लिए मिसाल है। इसी तरह इस कहानी से आप जानेगे कि हम एक बार कुछ ठान लें तो उसे कर पाने का हर नामुमकिन रास्ता भी पार कर जाते हैं।
महाराष्ट्र कैडर से IPS मनोज शर्मा की कहानी इस देश के हर युवा के लिए मिसाल है। बीते माह उनके ऊपर उनके ही साथी अनुराग पाठक ने एक किताब लिखी है। ‘12th फेल, हारा वही जो लड़ा नहीं’ शीर्षक से लिखी इस किताब में मनोज शर्मा की जिंदगी का हर वो संघर्ष दर्ज है जो एक आम इंसान को तोड़ देता है। लेकिन मनोज शर्मा ने अपनी गर्लफ्रेंड के एक वादे पर ऐसा यू टर्न लिया कि आईपीएस बन गए। बता दे, मनोज 2005 बैच के महाराष्ट्र कैडर से IPS ऑफिसर हैं।
शुरुआती पढ़ाई
मनोज शर्मा 2005 बैच के महाराष्ट्र कैडर के अफ़सर हैं। अभी वह मुंबई में एडिशनल कमिश्नर ऑफ़ वेस्ट रीज़न के पद पर तैनात हैं। उनका जन्म अविभाजित मध्यप्रदेश के मुरैना में हुआ था। तो इस किताब में उनके छात्र जीवन के बारे में जो तथ्य है और जहां से वह आईपीएस तक का सफ़र तय किए हैं काबिल-ए-तारीफ़ है। दरअसल, मनोज 9वीं, 10वीं और 11वीं में थर्ड डिग्री में पास हुए। इस किताब में मनोज कहते हैं कि वे 11वीं तक नकल करके पास हुए। 12वीं में इसलिए फेल हो गए, क्योंकि नकल नहीं हुई।
उन दिनों वह सोचते थे कि 12वीं नकल मारकर पास करने के बाद टाइपिंग सीखकर कहीं न कहीं नौकरी करने लगेंगे। लेकिन, इलाके के एसडीएम के सख्त निर्णय से नकल नहीं हो सका। वह कहते हैं, एसडीएम के उस निर्णय का मेरे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा। मैंने सोचा इतना पावरफुल आदमी कौन है। बस उसी समय मैंने ठान लिया कि मुझे भी एसडीएम बनना है।
लाइब्रेरियन से लेकर चपरासी तक की नौकरी
मनोज 12वीं फेल होने के बाद रोजी-रोटी के लिए अपने भाई के साथ टैंपो चलाते थे। एक बार उनका टैंपो पकड़ा गया तो उन्हें लगा कि एसडीएम इसे छुड़ा सकते हैं। मैं एसडीएम के पास टैंपो छुड़ाने के लिए गया था, लेकिन मैं उनसे उनकी तैयारी के बारे में बात करने लगा। उनकी बात सुनने के बाद मैंने तय कर लिया कि अब यही बनना है। अपने घर ग्वालियर वापस आए। पैसे की तंगी थी। खाना तक न होने का वक्त भी देखा। फिर लाइब्रेरियन कम चपरासी का काम मिला।
कवियों या विद्वानों की सभाओं में बिस्तर बिछाने, पानी पिलाने का काम भी किया। तैयारी शुरू की, एसडीएम ही बनना था लेकिन तैयारी धीरे-धीरे उच्च लेवल की करने लगे। मनोज कहते हैं, मैं घर से थैला लेकर ग्वालियर आ गया। पैसे नहीं थे, इसलिए भीखारियों के पास सोता था। खाने तक को कुछ नहीं था। किस्मत ने साथ दिया और लाइब्रेरियन कम चपरासी की नौकरी मिल गई। यहां मैंने गोर्की और अब्राहम लिंकन को पढ़ा। मुक्तिबोध को जाना और फ़िर तैयारी शुरू कर दी।
12वीं फेल का ठप्पा
12वीं फेल का ठप्पा पीछा नहीं छोड़ता था। जिस लड़की से प्यार किया, उससे भी दिल की बात न कह सके। डर था वो ये कह न दे 12वीं फेल हो। इसलिए फिर से पढ़ाई शुरू की। संघर्ष कर दिल्ली आए। पैसों की जरूरत थी। बड़े घरों में कुत्ते टहलाने का काम मिला। 400 रुपये प्रति कुत्ता खर्च मिलता था। इसके बाद मेरे सर विकास दिव्यकीर्ति ने बिना फीस एडमिशन दे दिया।
पहले अटेंप्ट में प्री निकाल दिया.लेकिन दूसरे, तीसरे अटेंप्ट में प्यार हो जाने के कारण प्री में ही नहीं हुआ। मैं जब चौथी बार में प्री निकाल पाया, फिर मेन्स देने गया तो उसमें 100 नंबर का टूरिज्म पर निबंध लिखना था, टेरेरिज्म पर निबंध लिख दिया। इसकी वजह थी कि अंग्रेजी में बहुत कमजोर था। वह कहते हैं, मैं जिस लड़की से प्यार करता था, उससे कहा कि तुम साथ दो तो दुनिया पलट दूंगा। इस तरह मोहब्बत में जीत के बाद मैंने पढ़ाई शुरू कि और चौथे अटेम्प्ट में 121वीं रैंक के साथ आईपीएस बन गया।
बता दें कि मनोज ग्वालियर से पोस्ट-ग्रैजुएशन करने के बाद पीएचडी भी पूरी कर चुके हैं। मनोज शर्मा पर अनुराग पाठक ‘12th फेल, हारा वही जो लड़ा नहीं’ शीर्षक से किताब लिख चुके है। अनुराग ने एक इंटरव्यू में कहा, इनकी कहानी लिखने के पीछे बच्चों को प्रेरित करने का उद्देश्य है। बता दें कि 2005 बैच के महाराष्ट्र कैडर से आईपीएस बने मनोज मुंबई में एडिशनल कमिश्रनर ऑफ वेस्ट रीजन के पद पर तैनात हैं।