जानिए! हिंदुस्तान के आखिरी बादशाह के बेटो की कहानी, जिनकी आंखों के सामने डूबा मुगलों का सूरज!

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bahadur shah zafar sons story

मिर्जा जवान बख्‍त और मिर्जा शाह अब्बास... ऊपर की ब्‍लैक एंड वाइट फोटो में दिख रहे बच्‍चों के यही नाम हैं। दोनों आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के वंशज थे। जी हां आपने बिलकुल सही पढ़ा, ऊपर तस्वीर में दिख रहे लड़के मुगलिया सल्तनत के राजकुमार थे, जिनकी तस्वीरें आये दिन सोशल मीडिया पर शेयर होती रहती है। कभी आखिरी दिनों में मुगलों की दयनीय हालत दिखाने को, कभी यह बताने को कि मुगल हकीकत में वैसे हट्टे-कट्टे, सुंदर और नयनाभिरामी नहीं थे जैसे फिल्‍मों, टीवी व अन्‍य माध्‍यमों में दिखाए जाते हैं। तो चलिए जानते है इस तस्वीर का इतिहास। 

मुगलों का डूबता सूरज और आखरी बादशाह!

कहानी सुरु होती है, 1857 की क्रांति से। इधर क्रांति खत्म हुई, उधर मुगलिया सल्तनत का सूरज डूबने लग गया। बहादुर शाह जफर का शासनकाल आते-आते वैसे भी दिल्ली सल्तनत के पास राज करने के लिए सिर्फ दिल्ली यानी शाहजहांबाद ही बचा रह गया था। कहने को तो दिल्ली की गद्दी पर आखरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर बैठे हुए थे, लेकिन असल सत्ता की चाभी अंग्रेजो के हाँथ आ चुकी थी। 

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Image Source: BBC News/PENGUIN BOOKS

1857 की क्रांति के दौरान जब अंग्रेजों की जीत तय नजर आने लगी, बहादुर शाह जफर ने हुमायूं के मकबरे में शरण ले ली। यानी देखा जाए तो अंग्रेज़ों का दिल्ली पर फिर कब्ज़ा हो गया था। मेजर विलियम हडसन की अगुवाई में ब्रिटिश फौज ने मकबरे को चारों तरफ से घेर लिया। हॉडसन ने मकबरे के मुख्यद्वार से महारानी ज़ीनत महल से मिलने और बादशाह को आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार करने के लिए अपने दो नुमाइंदों को भेजा। 

20 सितंबर 1857 को जफर ने हडसन के सामने आत्‍मसमर्पण कर दिया। शर्त यह रखी कि उनके परिवार की जिंदगी बख्‍श दी जाए। हडसन ने मुगल बादशाह के परिवार के करीब 16 सदस्‍यों को गिरफ्तार कर लिया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, इनमें जवान बख्‍त और शाह अब्‍बास भी शामिल थे। 

किस्‍मतवाले थे 22 सितंबर 1857 को बच गए दोनों शहजादे!

उधर बादशाह को पकड़े जाने के एक दिन बाद 22 सितंबर तक जनरल आर्चडेल विल्सन ये तय नहीं कर पाए थे कि उस समय तक जीवित शहज़ादों का क्या किया जाए जो अभी भी हुमांयू के मक़बरे के अंदर मौजूद थे। कैप्टेन हॉडसन का मानना था कि इससे पहले कि वो भागने की कोशिश करें उन्हें हिरासत में ले लिया जाए। इन शहज़ादों में शामिल थे विद्रोही सेना के प्रमुख मिर्ज़ा मुग़ल, मिर्ज़ा ख़िज़्र सुल्तान और मिर्ज़ा मुग़ल के बेटे मिर्ज़ा अबूबक्र। 

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बहादुर शाह जफर के बेटे. बाईं ओर जवान बख्त हैं, और दाईं ओर मिर्जा शाह अब्बास हैं (तस्वीर: Wikimedia Commons)

तारीख 22 सितंबर 1857, कैप्टन विलियम हॉडसन ने बादशाह के भतीजे और अपने मुख्य ख़ुफ़िया अधिकारी रजब अली को इस संदेश के साथ शहज़ादों के पास भेजा कि वो बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दें वरना परिणाम झेलने के लिए तैयार रहें। आधे घंटे बाद शहज़ादों ने हॉडसन को संदेश भेजकर पूछा कि क्या वो उन्हें न मारने का वादा करते हैं? हॉडसन ने इस तरह का कोई वादा करने से इनकार कर दिया और उनके बिना शर्त आत्मसमर्पण करने की बात दोहराई। 

थोड़ी देर बाद तीनों शहज़ादे बैलों द्वारा खींचे जा रहे एक छोटे रथ पर सवार हो कर बाहर आए। उनके दोनों तरफ़ पाँच सैनिक चल रहे थे। शहज़ादों के साथ उनके हथियार और बादशाह के हाथी, घोड़े और वाहन भी बाहर लाए गए जो पिछले दिन बाहर नहीं आ पाए थे। गिरफ्तार मुगल खानदान को पूरी सुरक्षा के बीच, बैलगाड़‍ियों में बिठाकर ले जाया जाने लगा। 

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कैप्टन विलियम हॉडसन अपने सैनिकों के साथ/ Image Source: BBC News/PENGUIN BOOKS

लेकिन दिल्ली शहर के रास्ते में ही हडसन ने उन तीन शहजादों को बैलगाड़ी से उतरने का फरमान सुनाया। उन्‍हें निर्वस्‍त्र करवाया और फिर पॉइंट ब्‍लैंक रेंज पर गोली मार दी। शवों को तीन दिन तक चांदनी चौक की एक कोतवाली के बाहर लटकाए रखा गया ताकि विद्रोह की बची-खुची आवाजें भी अंजाम सोचकर चुप हो जाएं। यानी अंग्रेजो ने एक एक करके मुगलो के सभी शहज़ादों को मार दिया। 

बादशाह और शहजादों का रंगून में निकला दम!

हडसन के सामने रखी शर्त के अनुसार, बहादुर शाह जफर (तस्‍वीर में) को अंग्रजों ने मौत की सजा नहीं दी, बल्कि रंगून निर्वासित कर दिया। 7 अक्‍टूबर 1858 को जब आखिरी मुगलों ने रंगून का सफर शुरू किया तो बैलगाड़‍ियों में मिर्जा जवान बख्‍त और मिर्जा शाह अब्बास भी थे। बर्मा में अंग्रेजों की कैद में ही 7 नवंबर, 1862 को सुबह बहादुर शाह जफर की मौत हो गई। 

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मुगल बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र की आख़िरी तस्वीर, Image Source: Wikimedia Commons

उन्हें उसी दिन जेल के पास ही श्वेडागोन पैगोडा के नजदीक दफना दिया गया।  इतना ही नहीं उनकी कब्र के चारों ओर बांस की बाड़ लगा दी गई और कब्र को पत्तों से ढंक दिया गया। ब्रिटिश चार दशक से हिंदुस्तान पर राज करने वाले मुगलों के आखिरी बादशाह के अंतिम संस्कार को ज्यादा ताम-झाम नहीं देना चाहते थे। इसलिए उस बक्त बादशाह को एक गुमनाम विदाई दे दी गई। 

दोनों शहजादों का क्या हुआ?

मिर्जा जवान बख्‍त को इतिहासकारों ने जफर का लाडला बताया है। बख्‍त को मां जीनत महल इस तरह पाल-पोस रही थीं कि एक दिन उन्‍हें मुगलों की गद्दी पर बैठना है। हालांकि अंग्रेजों की नीति सबसे बड़े बेटे को राज सौंपने की थी, इसलिए जीनत की पेशकश ठुकरा दी गई। 

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Image Source: commons.wikimedia

रंगून निर्वासित होने के बाद मिर्जा जवान बख्‍त को शराब की लत लग गई। 18 सितंबर 1884 को बेहद महज 43 साल की उम्र में लिवर सिरोसिस से मिर्जा जवान बख्‍त की मौत हो गई। दो साल बाद जीनत महल ने भी दम तोड़ दिया। मिर्जा शाह अब्‍बास की मौत 25 दिसंबर 1910 को हुई।

मुगलों के वंशज अब किस हाल में हैं?

2005 की एक टाइम्‍स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि सदियों तक भारत में राज करने वाले मुगलों के वंशज झुग्‍गी-झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं। उस रिपोर्ट में तब 60 साल की रहीं सुल्‍ताना बेगम के बारे में जानकारी थी। 60 साल की सुल्‍ताना बेगम भारत के आखिरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर की पौत्रवधू हैं। अपनी शाही विरासत के बावजूद वो मामूली पेंशन पर रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने की जद्दोजहद में लगी रहती हैं। 

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Image Source: Amar Ujala

उनके पति राजकुमार मिर्जा बेदर बख्‍त की साल 1980 में मौत हो गई थी और तब से वो गरीबों की जिंदगी जी रही हैं। वो हावड़ा की एक झुग्‍गी-छोपड़ी में रह रही हैं। यही नहीं उन्‍हें अपने पड़ोसियों के साथ किचन साझा करनी पड़ती है और बाहर के नल से पानी भरना पड़ता है। 2010 की एक TOI रिपोर्ट बताती है जफर के बाद की छठी पीठी के जियाउद्दीन तुसी भी बेहद कंगाली में गुजर-बसर करते हैं। सरकारी नौकरी के बाद उनकी जिंदगी पेंशन पर चल रही है।