स्कूल फीस के नहीं थे पैसे तो साइकिल पंचर की दुकान चलाकर की पढ़ाई, बना IAS अफसर!

आज की कहानी एक ऐसे ही शख्स की सफलता को लेकर है, जिन्होंने बाधाओं का डटकर मुकाबला करते हुए ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया है जो आपको सुनने में अविश्वसनीय लगेगी। लेकिन है सौ प्रतिशत सच। महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर से आने वाले इस साइकिल रिपेयर मैकेनिक ने अपनी मजबूत आत्मबल और दृढ़ इच्छा-शक्ति की बदौलत देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा यूपीएससी में बाज़ी मारते हुए एक आईएएस अधिकारी बनने तक का सफ़र तय किया है।
नाम है वरुण कुमार बरनवाल, जो 2014 बैच के आईएएस (गुजरात कैडर) हैं। उनकी आईएएस अफसर बनने की कहानी सोशल मीडिया पर लोगों को प्ररेण दे रही है। इस कहानी को Humans of Lbsnaa नाम के फेसबुक पेज पर 22 सितंबर को शेयर किया गया था। जो की इस समय सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है।
कभी साइकिल पंचर जोड़कर किया गुजारा!
महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर बोइसार से ताल्लुक रखने वाले वरुण बरनवाल के बारे में कहा जाता है, कि बह एक बेहद साधारण और गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे। वरुण ने बचपन से ही गरीबी को बेहद करीब से महसूस किया। पिता की एक साइकिल रिपेयर की दूकान थी, उसी से पूरे घर का खर्चा चलता था। लेकिन सायद नियति को कुछ और ही मंजूर था।

साल 2006 नें वरुण ने अपने पिता को खो दिया था। पिता की मौत के बाद परिवार का सारा भार वरुण के कंधे ही आ टिका। बड़ा बेटा होने के नाते उन्होंने घर की जिम्मेदारी उठाने का फैसला किया। एक तरफ पढ़ाई और दूसरी तरह घर की जिम्मेदारी। वरुण ने सोच लिया था कि पढ़ाई छोड़कर उन्हें पिता की साइकिल की दुकान संभालनी है।
From repairing cycles to becoming an IAS officer, Varun Baranwal owes it all to his mother. Varun Baranwal was born in Boisar, in Palghar district of Maharashtra, pic.twitter.com/ePmMsKozhE
— GNNS (@SWAINGN1) August 26, 2018
पढ़ाई की चाह रहने के बावजूद वरुण को पढ़ने के लिए वक़्त नहीं मिल पाते थे। पूरे दिन साइकिल के पंक्चर लगाता और रात को थके-हारे घर जाकर सो जाता। वरुण उस समय 10वीं की परिक्षा दे चुके थे, ऐसे में उन्हें उसके रिजल्ट का बेसव्री से इन्तजार था। जब 10वीं के परीक्षा परिणाम आए, तो उनकी जिंदगी ने एक अलग मोड़ लिया।
10वीं के रिजल्ट ने बदली जिंदगी
दरअसल, वरुण ने 10वीं की परीक्षा में टॉप किया था। वो पूरे गांव में सबसे ज्यादा अंक हासिल करने वाले छात्र थे। इसे सफलता से वरुण के हौसले को नई उड़ान मिली लेकिन आर्थिक हालातों ने उनके सपने पर पानी फेर दिया।

पढ़ाई में बेटे की दिलचस्पी को देख मां ने वरुण को पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित किया और खुद दुकान की जिम्मेदारी उठा ली। परीक्षा के अच्छे परिणाम से प्रेरित होकर वरुण ने आगे की पढ़ाई करने का मन बनाया।
कई लोगो ने बढ़ाया मदद के लिए हाँथ!
माँ का साथ मिलने पर अब तक वरुण पढ़ाई जारी रखने का मन बना चुके थे, ऐसे में उनके पिता के एक दोस्त ने उनकी मदद के लिए हाँथ आगे बढ़ाया। पिता के दोस्त ने पढ़ाई में वरुण की लगन को देखकर उनका एडमिशन इंजनीयरिंग कॉलेज में करवा दिया। एक बार फिर वरुण ने नई जोश और उमंग के साथ अपनी पढ़ाई शुरू की।

वरुण ने एकेडमिक मेरिट स्कॉलरशिप हासिल की, जिससे फीस का खर्च बचा। कुछ शिक्षकों ने भी आर्थिक तौर पर उनकी मदद की। वो कहते हैं कि उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने में कई लोगों का हाथ है।
पास की यूपीएससी की परीक्षा और बदल गयी जिंदगी!

कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ वरुण समाज सेवा के कार्यों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। इन्होंने अन्ना हजारे के आन्दोलन में भी हिस्सा लिया था। इंजीनियरिंग पास करने के बाद वरुण ने प्राइवेट सेक्टर में नौकरी ना करके फैसला किया और आईएएस की तैयारी शुरू की। लोगों के भरोसे और अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने एक ही बार में यूपीएससी की परीक्षा पास की। उन्होंने देश में 32वां रैंक हासिल किया था।