प्रेरणा: 20 साल तक जिस यूनिवर्सिटी में रहा चपरासी, आज उसी में वो असिस्टेंट प्रोफेसर बन गया!

कहाबत है कि मेहनत का कोई शॉर्टकट नहीं होता, रास्ता कितना लंबा होगा, कितने दिन तक श्रम करना पड़ेगा, कितनी मुश्किलें आएंगी इसका भी कोई हिसाब नहीं... बस लगे रहना पड़ता है। और एक दिन मेहनत का फल ज़रूर मिलता है। और ये साबित कर दिखाया बिहार के कमल किशोर मंडल ने, जिन्होंने तिलका मांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी में लगभग 20 साल से ज्यादा गार्ड की नौकरी की और अब उसी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए। क्या है इसके संघर्ष की कहानी? चलिए हम आपको बताते है।
पहले जिस कॉलेज में गार्ड की नौकरी की, अब बने असिस्टेंट प्रोफेसर!
'जहां चाह है, वहां राह है' यह साबित कर दिखाया है बिहार के भागलपुर जिले के रहने वाले 42 वर्षीय कमल किशोर मंडल ने। कमल किशोर मंडल जिस विश्वविद्यालय में नाइट गार्ड की नौकरी करते थे, आज उसी विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर बन गए हैं।

दरअसल, भागलपुर कस्बे के मुंडीचक इलाके के रहने वाले कमल किशोर मंडल ने 23 साल की उम्र में 2003 में मुंगेर के आरडी एंड डीजे कॉलेज में नाइट गार्ड के रूप नौकरी शुरू की थी। उस समय मंडल पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएट थे, मगर पैसों की सख्त ज़रूरत आन पड़ी कि मजबूरन उन्हें नाइड गार्ड की नौकरी करनी पड़ गई। लेकिन इससे कमल की पढ़ने में रुचि कम नहीं हुई।
नौकरी करते हुए किया MA, PhD
मिली जानकारी के अनुसार, कमल किशोर मंडल ने तिलका मांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी के अंबेडकर विभाग में चपरासी और रात्रि प्रहरी के तौर पर ड्यूटी ज्वाइन कर लिया। इसके बाद उन्होंने पोस्ट ग्रैजुएशन करने का निर्णय लिया, और पहुंच गए विश्वविद्यालय के अधिकारियो के पास। जंहा से उन्हें आगे पढ़ाई जारी रखने की अनुमति प्रदान कर दी गई।

इसी दौरान अपनी मेहनत और लगन से गार्ड की नौकरी करते हुए मंडल ने 2009 में एमए (अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य में) कर लिया। कमल किशोर MA करके संतुष्ट नहीं थे, आगे पढ़ना चाहते थे। तीन साल तक विश्वविद्यालय अधिकारियों से अनुरोध करने के बाद उन्हें PhD करने की अनुमति मिली, और 2013 में उन्होंने दाखिला लिया और 2017 में कॉलेज में थीसिस जमा कर दी। उन्हें 2019 में पीएचडी की डिग्री से सम्मानित किया गया।
जिस विभाग में चपरासी थे, उसी में बने असिस्टेंट प्रोफेसर!
आपको बता दे, मंडल ने अपनी PhD पूरी करने के बाद, प्रोफेसर के लिए होने वाले एग्जाम राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) भी पास की और नौकरियों की तलाश जारी रखी। आखिर में 2020 में किशोर मंडल का इंतजार खत्म हुआ।

दरअसल, 2020 में बिहार स्टेट यूनिवर्सिटी सर्विस कमिशन ने तिलका मांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी में चार असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पोस्ट की वैकेंसी का Ad डाला। कमल किशोर ने अप्लाई कर दिया, 12 उम्मीदवारों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था, लेकिन किशोर मंडल भाग्यशाली थे कि उन्हें टीएमबीयू के उसी अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया, जिसमें वे चपरासी का काम करते थे।
पिता टी स्टॉल पर बेचते हैं चाय!
आपको बता दे, कमल किशोर मंडल के पिता गोपाल मंडल अपना परिवार चलाने के लिए सड़क किनारे एक टी स्टॉल पर चाय बेचते हैं। कमल किशोर मंडल भागलपुर के मुंदीचक नया टोला के रहने वाले गोपाल मंडल के चार बेटों में दूसरे पुत्र हैं। बेटे की सफलता पर गोपाल मंडल खुश हैं।
फ़िलहाल नियुक्ति पर चल रही है बाते!
ABP न्यूज़ के एक लेख अनुसार, कमल किशोर ने बताया कि जुलाई में काउंसलिंग हुई थी। उनके अलावा तीन अन्य अभ्यर्थी थे जिनकी जॉइनिंग हो गई है लेकिन इनके योगदान पर रोक लग गई। रोक लगाते हुए विश्वविद्यालय ने कई सवालिया निशान खड़े किए हैं। विश्वविद्यालय के ही किसी अधिकारी ने सवाल उठाते हुए कहा कि जब वह नाइट गार्ड में थे तो पीजी और पीएचडी करने के लिए समय कैसे मिला? इत्यादि।

वंही विश्वविद्यालय के कई अधिकारी ऐसे भी है जो कमल किशोर मंडल के समर्थन में खड़े होकर उनका साथ दे रहे है कि यदि विश्वविद्यालय ने कमल किशोर को पढ़ने की अनुमति दी है तो उन्हें योगदान का मौका अवश्य दिया जाएगा। इसके लिए जो उचित निर्णय होगा वह लिया जाएगा, किसी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए।
समाज के लिए प्रेरणा हैं कमल किशोर मंडल!
कमल किशोर मंडल के इस कारनामे को लेकर तिलका मांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी के कई सारे अधिकारी इसे प्रेरणाश्रोत बता रहे है। कमल किशोर की इस मेहनत और सफलता से तिलका मांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी के अंबेडकर विभाग के छात्र-छात्राओं में भी खुशी देखी जा रही है।

विभाग के छात्र छात्राओं का कहना है कि तिलकामांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी में पढ़नेवाले छात्र छात्राओं को कमल किशोर से सीख लेने की जरूरत है। ऐसे हजारों युवा जो निराश होकर मेहनत करना छोड़ देते हैं उन्हें कमल से सीखना चाहिए कि कैसे सच्ची निष्ठा से लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। बाकई कमल किशोर की कहानी सभी के लिए प्रेरणा है।