पिता टेम्पो चालक, मां खेत में करती है मज़दूरी, बेटी बनेगी गांव की पहली डॉक्टर!

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tempo driver daughter will become a doctor

कहा जाता है कि 'अगर इंसान हार न माने और उसके अंदर मेहनत करने का जज्बा हो तो सफलता पाने से उसे कोई रोक नहीं सकता'। इस वाक्य को सही साबित किया है, राजस्थान के झालावाड़ जिले के पचपहाड़ नामक एक छोटे से गांव में रहने वाली एक टेंपो चालक की बेटी ने। जो पने गांव की पहली डॉक्टर बनने जा रही है। नाज़िया ने NEET परीक्षा में 668 रैंक हासिल किया, सरकारी मेडिकल कॉलेज में उसका दाखिला तय माना जा रहा है। 

मां खेत में मजदूर, पिता टेम्पो चालक!

बता दें कि नाजिया के पिता इसामुद्दीन झालावाड़ में ही मालवाहक टेंपो चलाते हैं। इससे होने वाली आया से ही उनके परिवार का खर्च चलता है। ज्यादा कमाई नहीं होने की वजह से इसामुद्दीन आज तक पक्‍का मकान नहीं बनवा सकते, उनका परिवार आज भी कच्चे मकान में गुजर बसर करता है। नाजिया की मां अमीना बी एक घरेलू महिला हैं एवं खेतों में मजदूरी करती हैं।

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Image Source: Bhaskar

ग़रीबी के बावजूद माता-पिता ने बेटी की पढ़ाई के रास्ते में पैसों की कमी को कांटा बनने नहीं दिया। बेटी ने भी माता-पिता का मान बढ़ाया और कड़ी मेहनत करके आज सफ़लता प्राप्त की। बेटी नाजिया पर परिवार के साथ-साथ पूरे गांव को नाज है, क्योंकि नाजिया झालावाड़ जिले के पचपहाड़ गांव की पहली बालिका है जो डॉक्टर बनेगी। नाजिया गायनोकॉलोजिस्ट बनना चाहती है। 

माँ-बाप ने परिवारवालों के विरुद्ध जाकर बेटी को पढ़ाया!

दैनिक भास्कर से बात-चीत में नाज़िया ने बताया कि उसकी सफ़लता का पूरा श्रेय उसके माता-पिता को जाता है। परिवार के बाकी सदस्य नाज़िया की शिक्षा के विरुद्ध थे लेकिन उसके माता-पिता ने उसकी पढ़ाई को महत्त्व दिया।

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Image Source: Zee News

नाजिया बताती हैं कि 12वीं में साइंस विषय लेना भी कम खर्चीला नहीं है, लेकिन फिर भी पिता और माता ने कभी भी इस खर्चे में कमीं नहीं आने दी। वह भी नियमित स्कूल गई और हर दिन 4 से 6 घंटे तक पढ़ाई की। इसके बाद ही सफलता मिल पाई।

स्कॉलरशिप बनी वरदान!

आपको बता दे, नाजिया ने 8वीं तक गांव में ही तथा 9 से 12वीं तक भवानीमंडी के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। स्कूल जाने के लिए रोजाना 5 किलोमीटर साइकिल लेकर जाती थी। यह साइकिल सरकार द्वारा दी गई थी। बिना किसी शैक्षिक बैकग्राउंड वाले गरीबी से प्रभावित परिवार में जन्मी नाज़िया ने कक्षा 10 और 12 में सरकारी छात्रवृत्ति के जरिए पढ़ाई की। इसकी मदद से ही उन्होंने अपने जिले के पास कोटा शहर में स्थित एक कोचिंग में दाखिला लिया। 

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Image Source: thenewsporter

उनकी लगन को देखकर कोचिंग संस्थान ने भी उनकी आधी से ज्यादा फीस माफ की। इससे उन्हें सफलता प्राप्त करने का मनोबल भी मिला। नाजिया के अनुसार यह स्कॉलरशिप उनके लिए एक वरदान से कम नहीं थी।

नाजिया बनेगी गांव की पहली डॉक्टर!

नाजिया ने साल 2017 में 12वीं उत्तीर्ण करते ही कोटा में कोचिंग की, फिर पिछले 4 वर्षों से नीट के लिए प्रयासरत रही।  NEET के पहले तीन प्रयास में 487, 518 और 602 अंक प्राप्त किए लेकिन कॉलेज नहीं मिला। इस साल अधिक मेहनत की और सफलता प्राप्त की। आपको बता दे, नाजिया जिस गांव से आती हैं, वहां से अब तक कोई भी बच्चा नीट नहीं पास कर सका है। ऐसे में नाजिया MBBS करने के बाद गांव की पहली डॉक्टर बनेंगी। 

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सांकेतिक तस्वीर. Image Source: The Indian Express

नाजिया ने बताया कि एमबीबीएस पूरी मेहनत से करना चाहती है और आगे चलकर महिला एवं प्रसुति रोग विशेषज्ञ (गायनोकॉलोजिस्ट) के रूप में स्वयं को स्थापित करना चाहती है। एक इंटरव्‍यू में नाजिया ने कहा कि अब उम्मीद है कि उन्हें देख कर गांव के दूसरे बच्चे भी आगे बढ़ने की कोशिश करें और गांव की स्थिति बदलेगी।