सैल्यूट! स्टेशन पर भीख मांगने बाले सैकड़ो बच्चो के हाँथ से कटोरा छीन पकड़ा दी कलम-किताब!

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Sipahi Rohit Yadav

क्या आपने कभी किसी सिपाही के ट्रांसफर पर गांव वालों को रोते हुए देखा है। अगर नहीं, तो आपको उन्नाव के सिपाही रोहित कुमार से मिलना चाहिए। जिन्होंने एक गांव में ‘हर हाथ में कलम पाठशाला’ की स्थापना की। और गरीब बच्चो की पढ़ाई के लिए अपनी सैलरी तक खर्च कर देते थे। ऐसे में जब सिपाही का ट्रांसफर हुआ तो गुरु जी को जाते देखकर कई बच्चियां खूब रोईं। ग्राम प्रधान व ग्रामीणों ने गाजे-बाजे के साथ उन्हें विदाई दी। क्या है पूरी कहानी? चलिए हम आपको बताते है। 

सिपाही के तबादले पर भावुक हुए बच्चे!

Sipahi bacche

दरअसल, उन्नाव के सिकंदरपुर कर्ण ब्लॉक के गांव कोरारी कला में ‘हर हाथ में कलम पाठशाला’ की स्थापना करने वाले जीआरपी सिपाही रोहित गरीब बच्चों को 4 साल से फ्री पढ़ा रहे हैं। यह वे बच्चे हैं, जो स्टेशन पर भीख मांगा करते थे या फिर बहुत गरीब थे। रोहित ने इन बच्चों को पढ़ाने के साथ प्राथमिक विद्यालय में एडमिशन भी करवाया। साथ ही बच्चों की संख्या बढ़ने पर अपनी सैलरी से दो टीचर भी रखे। अब जब सिपाही रोहित का ट्रांसफर हुआ, तो बच्चे फूट-फूट कर रो पड़े।

कहानी जान आप भी करेंगे सैल्यूट!

इटावा के भरथना थाना के मुड़ैना गांव निवासी रोहित यादव की पहली पोस्टिंग झांसी में सिविल पुलिस में हुई थी। जून 2018 में उन्हें उन्नाव जीआरपी थाने में तैनाती मिली। उनकी ड्यूटी उन्नाव-रायबरेली पैसेंजर में लगाई गई थी। ड्यूटी के दौरान जब भी ट्रेन कोरारी स्टेशन पर रुकती तो गरीब परिवारों के बच्चे भीख मांगने आ जाते तो कुछ बच्चे सामान बेचने। 


रोहित ने जब उनमें से एक को बुलाकर उनकी पढ़ाई के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि घर के हालात ठीक नहीं, इसलिए बह पढ़ने नहीं जाते। गुजारे के लिए भीख मांगते है या कुछ छोटा-मोटा सामान बेचते है। जिससे बह अपना घर चलाने में सहयोग कर सके। ये देखकर रोहित ने उन्हें साक्षर बनाने की ठानी। उन्होंने मन में ठान लिया चाहे जो हो जाए बह इन बच्चो को साक्षर जरूर करेंगे। 


इसके बाद ट्रेन आगे बढ़ गई और रोहित अपनी ड्यूटी करने लग गए। लेकिन शाम को जैसे ही रोहित की ड्यूटी ख़त्म हुई बह बापिस कोरारी गांव पहुँच गए। जो बच्चे स्टेशन पर भीख मांग रहे थे, उनके घर का पता लगाया और उनके परिवार वालों के पास पहुंचा। रोहित ने माँ-बाप को पढ़ाई का महत्व समझाया और बच्चो को पढ़ाने की पेशकश की। रोहित की बात सुन पहले तो बच्चो के परिजन उखड गए और मना कर दिया। 

इस तरह सुरु हुआ ‘हर हाथ में कलम पाठशाला’ 

सिपाही रोहित यादव बच्चो को पढ़ाना चाहते थे, मगर बच्चो के अभिभावक ऐसा बिलकुल नहीं चाहते थे। आखिरकार एक-दो बार जाकर रोहित ने परिवार बालो को समझाया तो बह माने। उनकी ये कोशिश रंग लाई और सितंबर 2018 में गांव के बाहर एक पेड़ के नीचे पाठशाला की शुरुआत की। शुरुआत में बच्चे आते तो कभी नहीं आते। लेकिन रोहित ने प्रयास नहीं छोड़ा। 

Sipahi Bacche
Image Source: Bhaskar

बच्चों को पढ़ाना था, इसलिए रोहित ने अपनी ड्यूटी रात में लगवा ली। और बह दिन में एक माह तक ड्यूटी के बाद पांच बच्चों को पढ़ाने जाते रहे। तकरीबन एक महीने बाद मेरी पाठशाला में बच्चों की संख्या 15 हो गई। यह रोहित के लिए किसी अवार्ड से कम नहीं था। अब बच्चो को पढ़ाने का सिलसिला सुरु हुआ तो वारिस ने खलल दाल दी। इस पर रोहित ने कमरा किराये पर लेकर बच्चो को पढ़ाना सुरु कर दिया।

इसकी जानकारी जब डीपीआरओ साहब को हुई, तो उन्होंने पंचायत भवन की चाभी सौंप दी। अब रोहित की पाठशाला पंचायत भवन में लगना शुरू हो गई। देखते ही देखते डेढ़ साल में 80 से अधिक छात्र हो गए। एक साथ इतने बच्चों को अकेले पढ़ाना संभव नहीं हो पा रहा था। इसलिए कंपटीशन की तैयारी करने वाले पूजा और बसंत को 2-2 हजार रुपए की सैलरी पर रख लिया।

Sipahi bacche
Image Source: Bhaskar

इसके अलावा आसपास के कुछ अन्य टीचर भी फ्री पढ़ाने को तैयार हो गए। देखा जाए तो रोहित ने जो कारवां सुरु किया बह धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया और लोग उससे जुड़ते गए। लेकिन अब गरीब बच्चो को पढ़ाने बाले सिपाही रोहित यादव का ट्रांसफर हो गया। तो सारे बच्चे भाबुक हो गए। 

कहा हुआ रोहित का ट्रांसफर?

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सिपाही रोहित यादव का ट्रांसफर झांसी पुलिस लाइन में हुआ है। 16 अगस्त को ट्रांसफर आर्डर आया तो इसकी जानकारी जब स्कूल को हुई सब विदाई समारोह का आयोजन करने लग गए। वहां बकायदा बैंड-बाजा मंगाकर रखा गया था। विदाई के समय बच्चे रो पड़े तो रोहित की आंखों से भी आंसू निकल पड़े। 

sipahi bacche
Image Source: Bhaskar

इस बाबत सिपाही रोहित ने मीडिया को बताया कि, "मैं इन बच्चों को कभी नहीं भूल सकता हूं। इनसे मुझे जीवन का उद्देश्य मिला है। जब तक यह बच्चे पढ़-लिख कर कुछ बन नहीं जाते हैं तब तक मैं चाहे जहां रहूं, इनका ध्यान रखूंगा। बच्चों को भावुक देखकर उन्होंने मन लगाकर पढ़ने और कुछ बनकर दिखाने का वादा लिया। बीच-बीच मैं छुट्‌टी मिलते ही आता भी रहूंगा।