सास-ससुर व पति को खोया, अनुकंपा में मिली नौकरी ठुकराई...दो बच्चों को पालकर बनी RJS अफसर!

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मेहनत किसी अहसान का मोहताज नहीं होती। दृढ निश्चय के साथ निरंतर संघर्ष किया जाए तो कामयाबी खुद आगे आकर कदम चूमती है। और यह साबित कर दिखाया है सीकर के खंडेला स्थित गुरारा गांव निवासी रिचा शेखावत ने। जिसके सास-ससुर और पति तीनों का देहांत हो गया था। जिसके बाद दो बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी रिचा के कंधो पर थी, लगातार अपनों को खोने वालीं रिचा शेखावत ने सबकुछ खोया लेकिन हौशला नहीं खोया। और आज 88वीं रैंक लाकर RJS (न्यायिक सेवा) में सफलता पा ली है। तो आइये जानते है रिचा के संघर्ष से सफलता की कहानी। 

शादी के बाद जिम्मेदारी संभालते हुए की वकालत!

न्यायिक सेवा 2021 में 88वी रैंक लाने वाली रिचा शेखावत का संघर्ष कुछ शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। लेकिन इस संघर्ष से जूझकर जिस तरह वो सफलता के मुकाम तक पहुंची, आज लाखों औरतों ही नहीं बल्क‍ि बुरे वक्त में घुटने टेकने वाले हर शख्स के लिए एक मिसाल बन गई हैं। पूरी कहानी हर किसी के लिए प्रेरणादायी है। रिचा शेखावत के संघर्ष व कामयाबी को हर कोई सैल्‍यूट करता नजर आ रहा है। आइए आपको बताते हैं रिचा शेखावत की कहानी। 

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Image Source: ABP News

दरअसल, परिवार के साथ बीकानेर रह रही रिचा मूल रूप से सीकर जिले के गुरारा गांव (खंडेला) की हैं। इनके पिता रतन सिंह शेखावत पुलिस विभाग बीकानेर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। पिता की बीकानेर में ड्यूटी के चलते रिचा की पढ़ाई वही हुई वर्ष 2006 में रिचा की शादी थैलासर निवासी नवीन सिंह राठौर से हो गई। उनका ससुराल राजस्थान के चुरू जिले के रतननगर, थैलासर में है। 

शादी के तीन माह के बाद रिचा की सास की एक हादसे में मौत हो गई। जिसके बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारियां अब रिचा के कन्धों पर आ गई। उन्होंने अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए साल 2009 में वकालत की डिग्री पूरी की। इस दौरान बीकानेर में कांस्टेबल पद पर कार्यरत पति नवीन सिंह राठौड़ व डीएसपी पद पर कार्यरत पृथ्वी सिंह का पूरा सहयोग व प्रोत्साहन मिला। 

सालभर में पति और ससुर निधन!

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Image Source: GNNTV

रिचा अभी ससुराल और पढ़ाई की जिम्मेदारी को निभा ही रही थी कि वर्ष 2017 में रिचा के कांस्टेबल पति नवीन की मृत्यु हो गई और अगले ही साल वर्ष 2018 में डीएसपी पद पर कार्यरत ससुर पृथ्वी सिंह की भी मृत्यु हो गई। सालभर के अंतराल में पति और ससुर के निधन के बाद परिवार की जिम्मेदारी रिचा के कंधों पर आ गई। रिचा चाहती तो अपने पति की नौकरी अनुकम्पा के जरिए हासिल कर सकती थीं, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार करना उचित समझा। 

अनुकंपा में मिली नौकरी ठुकराई, दो बच्चों को पालकर की पढ़ाई!

सास-ससुर और पति तीनों का देहांत हो गया था। दो बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी रिचा के कंधो पर थी। उनके पति पुलिस सेवा में थे तो उन्हें पुलिस सेवा में अनुकंपा से नौकरी का ऑफर मिला था। लेकिन उन्होंने सविनय इसके लिए मना कर दिया। रिचा शेखावत ने वो वक्त देखा जब एक साल के अंतराल में पति व ससुर के निधन हो गया, लेकिन उन्होंने अनुकंपा नियुक्ति के बजाय संकट की राह को चुना। वो मेहनत के दम पर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहती थी। 


जिसके बाद, अपने दो बच्चों का पालन पोषण करते हुए रिचा ने अपना अध्ययन जारी रखा। रिचा अकेले बच्चों को संभालने के साथ अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए मेहनत करती रहीं। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आखिरकार उन्हें सफलता मिली। पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाते हुए राजस्थान न्यायिक सेवा जैसे बड़े एक्जाम को पहली ही बार में क्रेक किया और 88वीं रैंक के साथ चयनित हुई।

दो बच्चों को पालकर बनी RJS अधिकारी!

आपको बता दे, एलएलएम टॉपर रिचा ने पारिवारिक जिम्मेदारी बखूबी निभाते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी, जो उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था। उनके दो बच्चे हैं। बड़ी बेटी दक्षयानी सिंह 11वीं की छात्रा हैं, जबकि छोटा बेटा जयादित्य कक्षा 7वीं का छात्र है। दोनों बच्चों का पालन पोषण करते हुए वर्ष 2018 में PG Diploma in Legel & Forensic Science की। 


फिर साल 2020 में MGSU Bikaner से सर्वोच्च स्थान प्राप्त करते हुए LLM किया।  इसके बाद भी रिचा का संघर्ष जारी रहा और मेहनत के बलबूते वर्ष 2021 में RPSC से चयनित होकर विधि अधिकारी बनी और  PHED बीकानेर में पदस्थापित हुई। विधि अधिकारी बनने के उपरांत भी लक्ष्य प्राप्ति व  मुकाम हासिल करने के लिए संघर्ष जारी रखा।  


यहां से उन्होंने RJS की तैयारी की। न्यायिक सेवा में जाने की इच्छा के चलते आरजेएस परीक्षा परिणाम में मेरिट क्रमांक 88 पर चयनित होकर RJS बनकर दिखा दिया। 

सफलता के बाद क्या बोली रिचा?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस सफलता के बारे में रिचा शेखावत ने बताया कि दो छोटे बच्चों को पालने के साथ खुद के लिए कुछ करना उनके लिए बेहद मुश्किल था। मगर मन में ठान लिया था कि कुछ भी हो, हार नही माननी। इस तरह पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। रिचा ने बताया कि उनकी इस सफलता के लिए उनका पूरा परिवार साथ रहा है। 

महिला सशक्तिकरण का उदहारण बनी रिचा!

बाकई रिचा शेखावत का उन महिलाओं के लिए संदेश देती है जो विपरीत परिस्थितियों में निराश होकर अपनी पढ़ाई छोड़ देती हैं। पारिवारिक जिम्मेदारियों से जूझते हुए रिचा का संघर्ष और सफलता का यह कीर्तिमान समाज के लिए एक नया संदेश है। रिचा का मानना है कि शैक्षिक योग्यता से हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं, विपरीत परिस्थितियों में भी मेहनत और निरंतरता से हम अपना लक्ष्य जरूर प्राप्त कर सकते हैं।