रियल टाइगर: पाकिस्तान में रह कर 20 हज़ार भारतीय सैनिकों की जान बचाने वाला भारत का महान जासूस!

जासूसी का काम सुनने में जितना रोमांचक लगता हैस लेकिन उतना ही मुश्किल और जानलेवा होता है। बॉलीवुड की फिल्मों में जिस तरह से पर्दे पर जासूसों को दर्शाया जाता है उससे भी ज्यादा उलट एक सच्चे जासूस की कहानी हम आपको सुनाते हैं।
आलिया भट्ट की फ़िल्म ‘राज़ी’ में भारतीय जासूस सहमत की कहानी सामने आई थी। इस फ़िल्म दर्शकों को जासूसी के ख़तरों की एक झलक भर दी थी। देश के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगाने वाली ‘सहमत’ अकेली नहीं थी बल्कि उसके जैसा एक और हीरो था, जो भारत से पाकिस्तान गया था। उस हीरो को रवीन्द्र कौशिक के नाम से जाना जाता है।

आज हम आपको एक ऐसे भारतीय जासूस की कहानी बताने जा रहे हैं जो भारत की सेवा के लिए पाक आर्मी में मेजर बन गए थे। यह भारत का वो जासूस था जो सिर्फ 23 साल की उम्र में पाक गया और फिर कभी अपने वतन नहीं लौट सका। कहा जाता है कि सलमान खान की फिल्म ‘एक था टाइगर’ की प्रेरणा यही जासूस था।
हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा ‘जासूस’
रविंद्र कौशिक के बारे में बताया जाता है कि उनका जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ। बचपन से ही एक्टिंग के शौकिन राजेंद्र कौशिक साल 1972 में लखनऊ में आयोजित एक नाटक में हिस्सा लेने पहुंचे थे। उस वक्त तक देश में रॉ एजेंसी स्थापित हो चुकी थी और वहां अच्छे जासूसों की तलाश थी।

जिस नाटक में रवीन्द्र हिस्सा ले रहे थे, उसे देखने के लिए सेना के अधिकारी मौजूद थे, क्योंकि नाटक की थीम चीन और भारत के हालातों पर आधारित थी। इस नाटक में रविंद्र एक ऐसे जासूस की भूमिका निभा रहे थे जो चीन में जाकर फंस जाता है और काफी प्रताड़नाएं भी सहता है।
नाटक में रविंद्र के रोल को देखकर सेना के कुछ अधिकारी काफी प्रभावित हुए थे। उन्होंने रवीन्द्र को रॉ एजेंसी में शामिल होने का न्यौता दिया, जिसे रवीन्द्र मना नहीं कर पाए और इस तरह उनकी जासूसी जिंदगी की शुरुआत हुई।
रॉ ने दी सभी जरूरी ट्रेनिंग
आखिरकार अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद कौशिक ने ‘रॉ’ ज्वाइन कर लिया जिसके बाद उनका पूरा जीवन ही बदल गया। 23 साल की उम्र में भारतीय अंडर कवर एजेंट बने रविन्द्र कौशिक को दिल्ली में ट्रेनिंग दी गई थी। कौशिक को दिल्ली में इस तरह से ट्रेन्ड किया गया था कि वो एक मुसलमान युवक नजर आएं।

उन्हें उर्दू सिखाई गई और मुस्लिम धर्म से जुड़ी कुछ जरूरी बातों के बारे में भी बताया गया। 1975 में पाकिस्तान भेजे जाने से पहले रविन्द्र से जुड़े सभी दस्तावेजों और जानकारियों को एजेंसी द्वारा नष्ट कर दिया गया था और उनके परिवार से भी जुड़ी जानकारी छुपा दी गई थी।
रविंद्र कौशिक से नबी अहमद शाकिर!
1975 में उन्हें नबी अहमद शाकिर इस नाम के साथ पाकिस्तान भेजा गया। वहां जाने से पहले रवीन्द्र ने अपने परिवार को अलविदा कहा, अपनी पुरानी पहचान को मिटा दिया और नई पहचान के साथ सरहद पार की। इसके बाद वह बतौर सिविलियन बंहा रहने लगे।

उन्होंने कराची के लॉ कॉलेज में दाखिल लिया. यह केवल दिखावा नहीं था, बल्कि रवीन्द्र ने कॉलेज में रहते हुए खुद की नई पहचान को स्थापित किया। कानून में स्नातक की डिग्री ली। यहां तक कि खुद को पूरी तरह मुसलमान साबित करने के लिए रवीन्द्र ने खतना तक करवा लिया।
पहचान छिपाने में माहिर रविंद्र कौशिक बड़ी चालाकी से पाकिस्तानी सेना में भी भर्ती हो गये। अपनी लगन से उन्होंने पाकिस्तानी आर्मी में अधिकारी का ओहदा भी हासिल किया। पाकिस्तान के प्रति अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए उन्होंने मन लगाकर आर्मी की ट्रेनिंग ली। ये सब करते हुए 23 साल का रवीन्द्र 28 का हो गया और इसी दौरान उन्हें अमानत नाम की पाकिस्तानी लड़की से प्यार हो गया।
पहचान नकली लेकिन प्यार सच्चा था!

कहते हैं कि पाकिस्तान में रहते हुए रवीन्द्र के जीवन में अगर कुछ सच था तो वो बस अमानत के प्रति अपना प्यार। प्यार हुआ और उन्होंने उनसे शादी कर ली। उनका परिवार बसा और एक बेटी का जन्म हुआ।
पाकिस्तान सेना में बने अफसर
इसी के साथ रवीन्द्र ने पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों का विश्वास हासिल किया और धीरे—धीरे सिपाही से मेजर रैंक तक पहुंच गए। पढाई, करियर, परिवार के बीच रवीन्द्र भारत के लिए जासूसी भी करते रहे। भारत में रहने वाले कई पाकिस्तानी जासूसों के बारे में भी सूचनाएं दीं। वर्ष 1979 से 1983 के बीच उन्होंने कई अहम जानकारियों को भारतीय सेना तक पहुंचाया।

उनकी तरफ से भेजी गई इंटेलीजेंस देश के बड़े काम आई थी। कौशिक पाकिस्तान में भारतीय इंटेलिजेंस की धुरी बन गए थे। रविंद्र कौशिक की वजह से ही एक बार 20 हजार भारतीय सैनिकों की जान बची थी। कई बार ऐसे मौके आए जब कौशिक ने भारत के लिए कई अहम जानकारियां भेजीं और शायद इसी वजह से देश के तत्कालीन गृहमंत्री ने रविंद्र कौशिक को ‘टाइगर’ का खिताब दिया था।
खुद आईबी के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर एम.के. धर ने कौशिक पर लिखी अपनी किताब मिशन टू पाकिस्तान में लिखा है कि रविंद्र कौशिक हमारे लिए एक धरोहर थे। उस समय भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी कौशिक को ब्लैक टाइगर के नाम से ही पुकारती थीं।
आखिरी समय बड़ा दर्दनाक बीता!
पाकिस्तान के माहौल में अच्छे खासे ढल चुके रविन्द्र उर्फ नबी अहमद के राज से आखिरकार उस समय पर्दा उठा जब रॉ ने रविन्द्र के पास भारत से एक और जासूस को रहने के लिए भेजा जिसे बाद में पाकिस्तानी इंटेलिजेंस एजेंसियों ने धर लिया। पूछताछ में उसने बताया कि वह रवीन्द्र कौशिक के साथ काम करने आया था।

जब रवीन्द्र कौशिक की पाकिस्तानी पहचान उजागर हुई तो सेना के अधिकारी हैरान रह गए। रवीन्द्र को तत्काल सियालकोट सेंटर में बंदी बना लिया गया। उन्हें पाकिस्तानी सेना के सियालकोट सेंटर में रखा गया और उनसे राज उगलवाने की कोशिश की गई। हालांकि ‘टाइगर’ ने हजारों जुल्म सहने के बावजूद मुंह नहीं खोला।
1985 में उन्हें मियांवालां जेल भेज दिया गया। यहां रहते हुए रवीन्द्र टीबी की बीमारी के शिकार हुए और वहीं उनकी मौत हो गई। भारत के ब्लैक टाइगर को पाकिस्तानी की जेलों में करीब दो सालों तक खूब टॉर्चर किया गया था और बहुत ही दयनीय हालत में उन्हें पाकिस्तानी की जेलों में रखा जाता था।

30 साल देश की रक्षा करने वाले रवीन्द्र को अंत में ना तो अपनी ज़मीन नसीब हुई, ना परिवार। रवीन्द्र ने देश के लिए जासूसी करते हुए बहुत बड़ी कीमत अदा की थी, शायद सबसे बड़ी। कहा जाता है कि बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान की जासूसी पर आधारित फिल्म में ‘टाइगर’ की जिंदगी से काफी प्रभावित थी।