कभी पिता बनाते थे पंक्चर, मां बेचती थीं चूड़ियां और फिर गरीबी से लड़कर बेटा बना IAS अफसर

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ias ramesh gholap success story

जिंदगी है तो संघर्ष है और अगर संघर्ष है तो जीत निश्चित है…. ये लाइन जितनी सुनने में सुकून देती है उतनी है ही सफलता के करीब ले जाता है। रमेश घोलप एक ऐसे शख्स हैं जिन्होंने साबित किया की अगर मेहनत और लगन सच्ची है तो मंज़िलें खुद आपसे मिलने आती हैं। 

ias ramesh gholap
Image Source: Social Media

जी हाँ, ये कहानी है महाराष्ट्र के सोलापुर जिला के एक छोटे से गांव महागांव के रमेश घोलप की। वह इतने गरीब परिवार से ताल्‍लुक रखते थे कि उनकी कहानी सुन कर आपके आंखों में आंसू आ जाएंगे पर वो आज भारत के नामचीन IAS अधिकारी में जाने जाते हैं। जो रास्तें कभी मुँह फेर लेती थी वहां आज इस इंसान को दुनियां सलाम करती है। 

माँ के साथ कभी सड़कों पर बेचीं थी चूड़ियां!

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एक वक़्त था जब पिता की एक छोटी सी साइकिल रिपेयर की दूकान थी, मुश्किल से एक वक़्त का खाना नसीब था। इससे बड़ा संघर्ष क्या हो सकता है न खाने के लिए खाना, न रहने के लिए घर और न पढ़ने के लिए पैसे। रमेश घोलप शारीरिक तौर पर पोलियो के शिकार थे। रमेश की मां सड़कों पर चूड़ियां बेचती थीं और वह भी उनका हाथ बटाते थे। 

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वक़्त थोड़ा और आगे बढ़ा संघर्ष का यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा। मैट्रिक परीक्षा से एक माह पूर्व उनके पिता का निधन हो गया। रमेश को अपनी पढ़ाई पूरी करनी थी इसलिये वह अपने चाचा के गांव चला गया और वहीं उन्‍होंने 12 वीं कक्षा की परीक्षा दी। रमेश ने 12 वीं में 88.5 % मार्क्स से परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद इन्होंने शिक्षा में एक डिप्लोमा कर लिया और गांव के ही एक विद्यालय में शिक्षक बन गए। 

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डिप्लोमा करने के साथ ही रमेश ने बी ए की डिग्री भी ले ली। शिक्षक बनकर रमेश अपने परिवार का खर्चा चला रहे थे लेकिन उनका लक्ष्य कुछ और ही था। तब माँ ने भी बेटे की पढ़ाई को जारी रखने के लिए सरकारी ऋण योजना के तहत गाय खरीदने के उद्देश से 18 हज़ार रुपये ऋण लिया। माँ से कुछ पैसे लेकर रमेश IAS बनने के सपने संजोए पुणे पहुंचे। और फिर नौकरी छोड़ कर यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा देने में जुट गए। 

इरादे इतने मज़बूत, परेशानियों ने टेक दिए घुटने!

संघर्षों का सिलसिला यहीं नहीं थमा इतनी मेहनतों के बाद भी रमेश को पहली बार में सफलता नहीं मिली। दिन-भर काम करते, उससे पैसे जुटाते और फिर रात-भर पढ़ाई में जुट जातें। वक़्त इतना बेहराम हुआ कि पैसे जुटाने के लिए वो दीवारों पर नेताओं की घोषणाओं, दुकानों का प्रचार, शादी की पेंटिंग किया करते थें। 

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इंसान अगर मजबूत इरादे से किसी काम को करे तो दुनियां की कोई ताकत उसे हरा नहीं सकती। बड़ी से बड़ी परेशानियां भी उसके आगे घुटने टेक देती है। साल 2012 में उन्होंने कड़ी मेहनत की जिसके बाद उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा को पास की। यूपीएससी में उन्होंने 287 वी रैंक हासिल की, इस वक्त वह झारखण्ड में गढ़वा जिले की जिम्मेदारी बतौर DM संभाल रहे है।