नेक पहल! गरीब बच्चे बन सके काबिल इंसान, इसलिए लाल किले के पास ये कांस्टेबल लगाता है पाठशाला!

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constable than singh

वैश्विक महामारी संक्रमण के खतरे के कारण भारत में भी सरकार ने लॉकडाउन कर दिया था. इस दौरान पूरे देश पर तालाबंदी हो गई। स्कूल-कॉलेज, दुकानें, मॉल, कारखाने, होटल-रेस्टोरेंट सब बंद कर दिए गए। जिसकी बजह से अर्थव्यबस्था तो टूटी ही, साथ में टूटी शिक्षा प्रणाली। जिनके पास साधन था उनके बच्चे ऑनलाइन क्लास लेने लग गए, लेकिन गरीब के बच्चे कंहा जाए। जिस घर में खाने तक के लाले हो उस घर में हाई इंटरनेट के साथ ऑनलाइन क्लास बच्चे कैसे ले पाए?

ऐसे में लॉकडाउन के समय जरूरतमंदों के लिए मसीहा बने एक पुलिसवाले ने गरीब परिवारों के बच्चों को शिक्षित करने का भी बीड़ा उठा लिया। जिसकी चर्चा आज देश भर में हो रही है। लोग इस कांस्टेबल को अब गरीब बच्चो का मसीहा कहकर संबोधित कर रहे है। तो आइये जानते है इस मसीहा की कहानी। 

लाल किले के पास लगती है पाठशाला!

राजधानी की शान लाल किले की अद्भुत कारीगरी को देखने देश-विदेश से सैलानी आते हैं। मगर देश की इस ऐतिहासिक विरासत के अंदर ही छिपी है एक और खास बात, जिस पर शायद ही किसी ने गौर किया हो। यहां हर रोज चलती है मासूमों की स्कूली क्लास, जहां पेन-पुस्तक पर आड़ी-तिरछी लकीरों में भविष्य को आकार दे रहे हैं लाल किले में काम कर रहे मजदूरों के नौनिहाल।

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Image Source: India TV

दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल थान सिंह को गरीब बच्चों की पढ़ाई का बहुत फिक्र है। वह ड्यूटी खत्म करने के बाद शाम 5 बजे से लालकिले के पीछे बने एक छोटे से मंदिर में पाठशाला लगाते हैं। साल 2016 में उन्होंने 4 बच्चों के साथ इस पाठशाला की शुरुआत की थी, लेकिन अब उनके पास करीब की झुग्गियों से करीबन 50 से 60 बच्चे पढ़ने आते हैं।

पढ़ाई करने के लिए जब शाम को बच्चे आते हैं, तो दूर से ही 'अंकल नमस्ते' कहते हैं और पाठशाला में आकर बैठ जाते हैं। इन सभी बच्चों की उम्र 5 से 15 वर्ष के बीच है। उनकी कक्षा में काफी संख्या में गरीब बच्चे पढ़ने आते हैं। इसीलिए कांस्टेबल थान सिंह इन बच्चों को किताब-कापी, पेंसिल भी खुद से ही मुहैया कराते हैं। वहीं आला अफसर भी इस काम में थान सिंह की मदद करते हैं।

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अपनी पाठशाला में थान सिंह इन मासूम बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा नैतिक मूल्यों के विषय में भी बताते हैं और उन्हे जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते 
हैं। कांस्टेबल थान सिंह ने आईएएनएस को बताया:-

"इन बच्चों के माता-पिता मजदूरी करते हैं और इन सभी के पास इतना पैसा नहीं कि वे अपने बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम कर सकें। मैंने 2016 में इस पाठशाला की शुरुआत की थी, उस वक्त 4 बच्चे आते थे। आज करीब 50 बच्चे आ रहे हैं।" 

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मेरा बस यह उद्देश्य है कि ये बच्चे सही-गलत की पहचान करने लायक बन जाएं, अपने माता-पिता का सहारा बन सकें, अपना नाम लिख सकें। बस, रिक्शा, दुकान और अन्य स्थानों पर लिखे शब्दों को पढ़ और पहचान सकें। गरीब परिवारों के बच्चे ऑनलाइन क्लासेज लेने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए ये बुरी संगत में ना पड़ जाए इसलिए शिक्षा मिलना बेहद जरुरी है। 


इन मजदूरों के छोटे-छोटे बच्चे दिनभर बेवजह घूमते। टूरिस्टों के फेंके हुए सामान, खाली बोतलें ये बच्चे उठाते थे। इसलिए हमने इनके परिवार से बात करके उन्हें शिक्षा का महत्व समझाया, जिसके बाद इन बच्चो के परिजन भी पढ़ाई के लिए खुसी खुसी तैयार हो गए। आज हमारी कक्षाओं में भाग लेने वाले ज्यादातर छात्र क्षेत्र में रहने वाले मजदूरों के बच्चे हैं। 

"मैं खुद झुग्गियों में रहा हूं, पढ़ाई की एहमियत जानता हूं"

डीसीपी नूपुर प्रसाद ने बताया कि मूल रूप से दिल्ली के निहाल विहार निवासी थान सिंह 2010 में कॉन्स्टेबल भर्ती हुए। इन दिनों कोतवाली थाना एरिया में लालकिला चौकी में तैनात हैं। लाल किले के अंदर की बीट इन्हीं के पास है। बेहद गरीबी में पले-बढ़े थान सिंह बताते हैं कि उन्होंने स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई की है।

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मैं खुद झुग्गियों में रहा हूं, पढ़ाई की एहमियत जानता हूं। किन परिस्थितियों में गुजारा करना पड़ता है, ये सब मैंने देखा है और मैं नहीं चाहता कि ये बच्चे भी यही सब देखें। मुझसे जितना हो सकता है, उतने बच्चों की जिंदगी सुधारने की कोशिश करूंगा। नौकरी लगने से पहले पढ़ाई के साथ मेहनत-मजदूरी भी की। इसलिए अपने वो दिन याद हैं। और पढ़ी की अहमियत समझता हूँ।