पिता ने मजदूरी कर पढ़ाया, बिटिया ने MP टॉपर बनकर परिवार का नाम रौशन कर दिया!

कहावत है, गरीबी में जीना कोई नहीं चाहता, लेकिन जो इस गरीबी को हराकर आगे बढ़ जाय बही जिंदगी का सच्चा हीरो। और ऐसी ही एक हीरो बनी है, नैंसी दुबे। जिनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर है, लेकिन आज अपनी बेटी का रिजल्ट देख फूले नहीं समां रहे है। आखिर उनकी होनहार बिटिया ने उनका सर फक्र से ऊँचा जो कर दिया है। तो आइये जानते है इस होनहार बिटिया की कहानी।
दिहाड़ी मजदूर की बेटी बनी MP टॉपर!
मामला, MP बोर्ड के 10वीं रिजल्ट से जुड़ा हुआ है। जब रिजल्ट आया तो यंहा के छतरपुर जिले से सटे नारायणपुरा गांव में रहने वाली नैंसी दुबे एमपी दसवीं बोर्ड की टॉपर नैंसी दुबे ने परीक्षा में 496 मार्क्स हालिस कर पूरे प्रदेश में टॉप स्थान हासिल करके अपने पिता का सर फक्र से ऊँचा कर दिया। नैंसी एक्सीलेंस स्कूल की छात्रा है।

आपको बता दे, वह 5 भाई-बहनों में तीसरे नंबर की बहन हैं। नैंसी के पिता एक किराना दुकान पर दिहाड़ी मजदूर हैं। तो मां गृहणी हैं। बिटिया की सफलता पर पूरे परिवार को गर्व है। टॉप करने के बाद नैंसी के घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है।
रिजल्ट आने के बाद मां की आंखों में आंसू आ गए!
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुबह से ही नैंसी के परिवार के लोगों को रिजल्ट का इंतजार था। दोपहर एक बजे रिजल्ट की घोषणा हुई। परिणाम देखकर परिवार के लोग खुशी से उछल पड़े। बेटी के रिजल्ट आने के बाद मां की आंखों में आंसू आ गए है। परिवार में अब बिटिया की सफलता पर लड्डू बंट रहे है।

वहीं, नैंसी की मम्मी ने बताया कि बेटी पढ़ने में काफी होशियार थी, लेकिन वह MP टॉप कर जाएगी यह नहीं सोचा था। इतनी खुशी हो रही है कि मैं कुछ बोल नहीं सकती। हमारी चारों बिटिया अच्छी पढ़ती हैं। हमारी बड़ी बेटी तो PSC की तैयारी कर रही है।
पिता का संघर्ष ने बनाया मेहनती!
नैंसी के पिता राम मनोज दुबे बताते हैं कि वह मजदूरी करते हैं। कुछ दिनों पहले तक शहर में जाकर एक किराने की दुकान में मजदूरी का काम करते थे। लॉकडाउन के दौरान वह नौकरी चली गई और अब वह गांव में रहकर ही मजदूरी करते हैं। राम मनोज की कुल चार बेटियां और एक बेटा है। नैंसी तीसरे नंबर की बेटी है।

नैंसी बताती है कि हमारी मम्मी ने पहले ही सोचा था कि अपने सभी बच्चों को पढ़ाना ही है। पापा सुबह-सुबह ही काम पर निकल जाते थे, हमलोग छोटे थे इसलिए वह हमें स्कूल छोड़ने के लिए घर आते थे। हमें स्कूल छोड़कर वापस काम पर जाते थे। हमारे मम्मी-पापा ने हमे संघर्ष करके पढ़ाया है।
गांव में हम ही पहले थे जिसने 8वीं के बाद भी पढ़ाई की। क्यूंकि आगे कि पढ़ाई के लिए दूर जाना पड़ता था, इसलिए गांव के किसी लड़की को बंहा तक जाने का मौका जल्दी नहीं मिल पाता था। लेकिन हमारे मम्मी-पापा ने हमे कभी पढ़ाई के लिए नहीं रोका। इसीलिए गांव से छतरपुर स्कूल जाने के लिए लगभग छह किलोमीटर साइकिल चलाकर स्कूल जाती थी।

नैंसी अपनी इस उपलब्धि का सारा श्रेय अपने परिजनों और अध्यापकों को देती है। नैंसी की मानें तो उसकी पढ़ाई में परिवार में सबसे ज्यादा अगर किसी ने उसका सहयोग किया है तो उसकी बड़ी बहन वैशाली और उसके बाद अध्यापकों ने।