इस कहते है प्रकृति प्रेम! इस अकेले आदमी ने 70 एकड़ ज़मीन को जंगल में बदला, लगाए 5 करोड़ पेड़!

आदमी अगर मन में ठान लें तो क्या नहीं किया जा सकता। जिस काम को लाखों-करोड़ों रुपए लगाकर भी सरकारें नहीं कर पाती, उसी काम को तेलंगाना के रहने वाले दुशार्ला सत्यनारायण ने अकेले अपने दम पर कर दिखाया है। उन्होंने बिना किसी से कोई सहयोग लिए गांव में 70 एकड़ का जंगल तैयार किया, साथ ही 13 तालाब और फलों से लदे हुए कई पेड़ भी लगाए तथा अनगिनत पशु-पक्षियों का घर बना हुआ है। तो आइये जानते है इस शख्स की कहानी जिसने पुस्तैनी जमीन को जंगल में बदल दिया!
4 साल की उम्र से लगा रहे पेड़
तेलंगाना के सूर्यापेट जिले का एक गांव है राघवपुरा। और इसी गांव में रहते है दुशार्ला सत्यनारायण, जिन्हे बचपन से ही प्रकृति प्रेम था। वह एक पटवारी परिवार से हैं, जो अक्सर गांव के ज़मींदार या ज़मीन अकाउंटेंट होते हैं। सत्यनारायण बताते हैं कि उनके परिवार के पास 300 एकड़ ज़मीन थी। इस ज़मीन का इस्तेमाल मुख्य रूप से सिंचाई और खेती के लिए किया जाता था।

जैसे-जैसे सत्यनारायण बड़े होते गए, प्रकृति के प्रति उनका प्रेम और बढ़ता गया। लेकिन समय के साथ, इस ज़मीन पर परिवार का स्वामित्व घटकर 70 एकड़ हो गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि रिश्तेदारों और दोस्तों ने दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ की और ज़मीन कब्जा ली। वंही कुछ जमीने दादा-परदादा के हाँथ से चली गई थी।
इनसबके बाबजूद सत्यनारायण के पिता के हिस्से में 70 एकड़ जमीन आई। अपने बचपन के दिनों को याद कर सत्यनारायण कहते है कि वह यह जंगल तब से बना रहे हैं जब उनकी उम्र चार साल की थी। तब प्रकृति प्रेमी सत्यनारायण, इमली और अन्य पौधों के बीज फैला देते थे, जिससे जमीन पर सिर्फ पेड़ ही पेड़ दिखाई दे।

माता-पिता ने भी सत्यनारायण के प्रक्रृति के प्रति प्रेम और पर्यावरण में उनके योगदान को समझा और किसी तरह का विरोध नहीं किया। बल्कि उनका सहयोग किया। जिसका नतीजा आज यह हरा भरा जंगल है।
इस जंगल में हैं करोड़ों पेड़-पौधे!
1980 में, वह कृषि विज्ञान से ग्रेजुएट हुए। इसके बाद उन्होंने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के लिए एक फील्ड ऑफिसर के रूप में काम करना शुरू किया। मात्र 27 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने गांव आ गए। यहां आकर वह अपनी पुश्तैनी जमीन को प्रकृति का स्वर्ग बनाने में लग गए। हालांकि पेड़-पौधे उगाना उनकी बचपन से रूचि थी परन्तु जॉब छोड़ने के बाद वह फुल टाइन इसी काम को करने लगे।

उन्होंने अपनी सारी बचत जंगल बनाने और इसके रख-रखाव में खर्च कर दी। आज, इस ज़मीन पर ढेरों फल देने वाले कई तरह के पेड़ हैं, जैसे- अमरूद, भारतीय बेर, क्लस्टर अंजीर, जामुन, अमरूद, कैरंडस बेर, आम, बांस आदि। सत्यनारायण ने कड़ी मेहनत के दम पर पिछले चालीस वर्षों में अपनी 70 एकड़ खेती की जमीन को एक जंगल में बदल दिया है।
In the thick of the forest with India’s GreenHeart Dusharla Satyanarayana who over the last 60 years developed a forest on his 70 acre of ancestral land at Raghavapuram, Mothe in Suryapet, Telangana. pic.twitter.com/4pgLRJBrxr
— Ch Sushil Rao (@sushilrTOI) March 19, 2022
अपने इस जंगल को बनाने के लिए वह जितना अधिक संभव हो सका, अलग-अलग स्थानों से दुर्लभ किस्मों के पेड़-पौधों के बीज तथा कलम लाकर यहां पर रोंपी, उनका पालन-पोषण किया और आज इस स्थिति में बना दिया कि जो पेड़-पौधे आसपास अन्यत्र कहीं और नहीं मिलते, वे सब यहां पर देखे जा सकते हैं।
जंगल के असली मालिक इंसान नहीं यंहा के जानवर!
सत्यनारायण बताते हैं कि यहां उगने वाला एक भी फल या वन संसाधन व्यावसायिक उद्देश्यों या मानव उपभोग के लिए नहीं जाता है। वह कहते हैं, “यहां जो कुछ भी उगता है वह उन जानवरो का है जो यंहा के असली मालिक है। सत्यनारायण कहते हैं कि इस जंगल के असली मालिक यहां के पेड़-पौधे तथा यहां रहने वाले जानवर हैं, वह तो केवल उनके सेवक हैं।

आपको बता दे, एक अनुमान के मुताबिक जंगल में लगभग 5 करोड़ पेड़-पौधे हैं, जिनमें से कई वन इकोसिस्टम के माध्यम से ही पुनर्जीवित हुए हैं। इनके अलावा यहां पर कई प्रकार के औषधीय पौधे भी उन्होंने उगा रखे हैं। उनका कहना है कि जंगल में औसतन प्रति एकड़ करीब 10 लाख पेड़ हैं। वह कहते हैं:-
“मेरा जंगल 70 एकड़ ज़मीन पर फैला हुआ है और कुछ खाली जगहों को छोड़कर, यहां लगभग पांच करोड़ पेड़ हैं।"
One man’s mission.
— Ch Sushil Rao (@sushilrTOI) March 21, 2022
One big vision.
60 years of labour.
70 acres of thick forest.
Meet Dusharla Satyanarayana.
India’s GreenHeart. pic.twitter.com/kY91JaLckp
जंगल में सुंदर-सुंदर तालाब और कई सारे जानवर!
सबसे बड़ी बात, यहां उगने वाले फल-फूल वे किसी को नहीं बेचते वरन ये पेड़ से नीचे गिर कर मिट्टी में ही मिल जाते हैं और उसे उपजाऊ बनाने में अपना योगदान देते हैं। यही नहीं, उन्होंने खुद से अपने इस जंगल के लिए एक नहर सिस्टम भी बनाया है, जिसके जरिए सभी पेड़-पौधों को पानी मिलता है। इसके अलावा सात छोटे तालाब भी खोदे गए हैं जिनमें हमेशा पानी भरा रहता है।

इनके अलावा स्थानीय मेंढ़क, मछलियां, कछुएं तथा अन्य कई जंगली जानवर रहते हैं। वहीं दूसरी ओर दुर्शाला सत्यनारायण यहां एक झोपड़ी बना कर रहते हैं। जब उनसे पूछा गया कि उनकी मृत्यु के बाद इस जंगल की देखभाल कौन करेगा, तो वह कहते हैं, प्रकृति इसमें सक्षम है।
केबल प्रकृति प्रेमियों का प्रवेश!
सत्यनारायण कहते हैं कि इस जंगल में किसी भी आगंतुक का स्वागत नहीं किया जाता है क्योंकि उनके आने से जंगली पशुओं को परेशानी होती है। सत्यनारायण इस जंगल में केवल उन्हें ही आने देते हैं, जो वास्तव में जंगल से, प्रकृति से और पशु-पक्षियों से प्रेम करते हैं। आज के दौर में सत्यनारायण जिस तरह से अपने प्राइवेट जंगल को विकसित कर रहे हैं, उसे देखकर पर्यावरणविद आश्चर्यचकित हैं।