पिता नहीं रहे तो चाय बेचकर की पढ़ाई...बड़ी बहन की शादी करवाई, मिलिए MA चायवाली से!

अपनी ठेठ पंच लाइन की वजह से मशहूर हुई बिहार की 'ग्रेजुएट चाय वाली' प्रियंका गुप्ता के बारे में आप सबने जरूर सुना होगा। जो पिछले दिनों खूब चर्चा में रही। लेकिन क्या आपने कभी एमए पास चाय वाली अंजना रावत के बारे में सुना है? जिन्होंने पिता के निधन बाद एक बेटी की तरह नहीं बल्कि बेटा बनकर परिवार की जिम्मेदारियों को संभाला और तमाम संघर्षों के बीच अपनी परेशानियां और मुश्किलें डटकर लड़ी। अंजना रावत ने हालातों को हराकर और कठिन परिस्थितियों में स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाया और तीलू रौतेली पुरस्कार भी जाती। क्या है अंजना के संघर्ष की पूरी कहानी? चलिए हम आपको बताते है।
17 साल की उम्र में संभाल ली थी दुकान...!
आज हम आपको मिलाएंगे पोस्ट ग्रेजुएट चायवाली से। ये उत्तराखंड के ऋषिकेश में चाय की दुकान लगाती हैं। बह पिछले 12 साल से दुकान चला रही हैं और इसी दुकान से अपने घर का खर्च चला रही हैं। इनका नाम अंजना रावत है। 31 साल की अंजना रावत, उत्तराखंड के श्रीनगर की रहने वाली है और पंजाब नेशनल बैंक के पास एक चाय की दुकान चलाती है।

आपको बता दे, अंजना 31 साल की हैं। मगर 12 साल पहले उनके पिता ने ये दुकान शुरू की थी, और पिता की कैंसर से मौत हो गई। उसके बाद अंजना ने दुकान संभाली। खास बात यह है कि चाय की दुकान चलाते हुए ही अंजना रावत ने एमए तक पढ़ाई भी पूरी की। साथ ही साथ अपनी बहन की शादी कराई और इसी दुकान से वो अपने परिवार का पालन-पोषण कर रही हैं। इसके साथ ही घर का लोन और दूसरे खर्चे वो दुकान की कमाई से चलाती हैं।
..लोग कसते थे फब्तियां!
आज जंहा अंजना मौजूद है वंहा तक पंहुचने के लिए उन्हें काफी संघर्ष से गुजरना पड़ा। पिता के गुजरने के बाद घर की दहलीज छोड़ 17 साल की उम्र में चाय दुकान पर कदम रखा। लेकिन इस ओछी मानसिकता बाले पुरुष प्रधान देश को कैसे हजम होता कि कोई लड़की दुकान चलाये। ऐसे में कई लोगों ने अंजना का मज़ाक बनाया। आते-जाते लोग फब्तियां कसते हुए अक्सर कहते थे कि यह लड़कों वाले काम हैं, इतने बुरे दिन भी नहीं आए कि लड़की की चाय की दुकान पर चाय पियेंगे। और ये सिलसला बदस्तूर जारी रहा, लेकिन अंजना ने हार नहीं मानी और हिम्मत नहीं छोड़ी।

अंजना बताती है कि उनके पिता को कैंसर हो गया था, जिससे उनका स्वास्थ्य खराब होता चला गया और कुछ दिनों बाद पिता जी गुजर गए। पिताजी की मृत्यु के बाद अंजना ने खुद ही अपने पिता की दुकान संभालने का निर्णय ले लिया। अंजना आगे कहती है कि मुझे लगता है कि समाज ने हर काम को लड़का और लड़की के दायरे में बांट रखा है। काम कभी छोटा बड़ा या जेंडर स्पेसिफिक नहीं होता, इसी सोच के साथ मैं हर रोज आगे बढ़ती हूं।
दुकान पर बैठकर की थी MA की पढ़ाई!
आपको बता दे, पिता का निधन और घर की जिम्मेदारियों की बजह से अंजना की पढ़ाई कुछ बक्त के लिए थम जरूर गई लेकिन अंजना ने हौसला दिखाते हुए दूकान से ही पढ़ाई जारी रखने का संकल्प बना लिया। इसके लिए अंजना अपनी पढ़ाई भी इसी दुकान पर किया करती थी। इन सबका खर्चा चाय की दुकान से उठाया। अपनी कमाई के ज़रिए ही अपनी बड़ी बहन की शादी करवाई और अब लोन लेकर घर भी बनवाया है।
मां अपनी बेटियों को देते है मेरा उदाहरण!
अंजना बताती हैं कि पहले जो लोग उनका मज़ाक उड़ाते थे आज वो ही लोग उनकी दुकान पर चाय पीने आते हैं। अंजना की मानें तो अब उन्हें अच्छा लगता है जब कोई मां अपनी बेटी को मेरी दुकान दिखाते हुए मेरा उदाहरण देती है। आपको बता दे, अंजना का सपना अपनी मां को एक बेहतर ज़िंदगी देने का है। एक तरफ जंहा अंजना अपनी जैसी हजारो लड़कियों के लिए प्रेरणा है तो वंही दूसरी तरफ राज्य सरकार ने अंजना के हौसले को सम्मान देकर सम्मानित किया।

आपको बता दे, प्रदेश सरकार ने अंजना के संघर्ष को सराहते हुए उसे तीलू रौतेली के पुरस्कार 2021 में प्रदान किया था। वहीं, अजंना की इस गौरवपूर्ण उपलब्धि पर अंजना का परिवार आज बेहद खुश है। वे इसे अंजना की लगन, मेहनत और कठोर परिश्रम का नतीजा बता रहे हैं। बाकई अंजना जैसी लड़कियां इस समाज के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं।