पिता मजदूर, खुद ठेले पर बेची चाय, दिन-रात मेहनत की तो पहले IPS फिर IAS अफसर बना!

जब छोटी जगहों के बच्चे बड़े सपने देखते हैं तो उन्हें साकार करना आसान नहीं होता। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति को कई लोग अपनी कामयाबी की राह में रोड़ा मान बैठकर, जिंदगी के संघर्षो से हार मान लेते है। वंही कुछ लोग ऐसे होते है जो मजबूरियों के पत्थरो पर अपनी मेहनत के लकीरे खींच आगे बढ़ जाते है, बाद में इन्हीं की कहानियां सदियों तक लोगो को प्रेरणा देती है। आईएस हिमांशु गुप्ता की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
जिसने बचपन बेहद गरीबी में काटा, स्कूल जाने के लिए रोजाना 70 किमी का सफर किया। इतना ही नहीं पिता का हाथ बंटाने के लिए चाय की दुकान पर काम तक किया। लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी, और दिन रात मेहनत करके आज बह IAS अफसर है। तो आइये जानते है IAS हिमांशु गुप्ता के संघर्ष की कहानी।
कभी पिता के साथ बेचते थे चाय!

हिमांशु का जन्म उत्तराखंड के एक बेहद गरीब परिवार में हुआ। हिमांशु के पिता शुरू में दिहाड़ी मजदूर का काम करते थे, जिससे मुश्किल से परिवार का गुजारा हो पाता था। जैसे-तैसे उनका घर चलता था। बाद में उन्होंने चाय का ठेला लगाना शुरू किया और हिमांशु भी स्कूल के बाद इस काम में अपने पिता की मदद करते थे।
"स्कूल के बच्चे चिढ़ाते, मगर मैंने हार नहीं मानी"
हिमांशु गुप्ता अपनी कहानी बताते हुए कहते हैं, कि मैं स्कूल जाने से पहले और बाद में पिता के साथ काम करता था। मगर जब भी मेरे सहपाठी हमारे चाय के ठेले के पास से गुजरते, मैं छिप जाता। क्यूंकि बह मुझे चाय ठेले पर काम करते हुए देखते और मेरा मजाक उड़ाते थे। मुझे 'चायवाला' कहा जाने लगा।
लेकिन मैंने इस ओर ज्यादा ध्यान ना देकर अपने परिवार की तरफ देखा। मेरे सपने बड़े थे। मैं एक शहर में रहने और अपने और अपने परिवार के लिए एक बेहतर जीवन बनाने का सपना देखता था। पापा अक्सर कहते थे, 'सपने सच करने है तो पढाई करो!' तो मैंने यही किया। जो लोग मेरा मजाक बनाते थे, उनको मैं मुंह से बोलकर नहीं अपनी पढ़ाई से जवाव देना चाहता था।
बरेली शिफ्ट हो गया परिवार!
हिमांशु कहते हैं, 'हमारा परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, ऐसे में जरुरी था संसाधन जुटाना। जिसके लिए हमारा परिवार, बरेली जिले में शिफ्ट हो गया। जहां उनके पिता ने अपना जनरल स्टोर खोला। हिमांशु कहते हैं, मुझे वहां के स्थानीय सरकारी स्कूल में दाखिला मिल गया। लेकिन बरेली में शिफ्ट होने के बाद भी मुश्किलें कम नहीं हुईं।

क्योंकि वहां आसपास कोई स्कूल नहीं था। हिमांशु कहते हैं, 'निकटतम इंग्लिश मीडियम स्कूल 35 किमी दूर था और वहां तक जाने के लिए उन्हें हर दिन 70 किमी की यात्रा करनी पड़ती थी। हिमांशु पढ़ाई में पहले से ही होशियार थे, 12वीं के बाद हिमांशु को दिल्ली के हिंदू कॉलेज में एडमिशन मिल गया।
विश्वविद्यालय में टॉप किया, सिविल सेवा की तैयारी शुरू की!

हिमांशु बताते है कि, "मैंने अपनी कॉलेज की फीस भी खुद चुकाई, मैं अपने माता-पिता पर बोझ नहीं बनना चाहता था। मैं निजी ट्यूशन देता और ब्लॉग लिखता। 3 साल के बाद, मैं अपने परिवार में स्नातक करने वाला पहला व्यक्ति बन गया। इसके बाद मैंने अपने विश्वविद्यालय में टॉप किया। इसके बाद हिमांशु के पास विदेश जाकर पीएचडी करने का मौका था, लेकिन उन्होंने देश में रहने का फैसला किया।
घर पर रहकर की यूपीएससी की तैयारी!

एजुकेशन पूरी होने के बाद हिमांशु वापस अपने घर लौट गए और वहीं पर रहकर सिविल सेवा की तैयारी शुरू कर दी। इसके बाद उन्होंने कड़ी मेहनत की और पहली बार UPSC का अटेम्पट दिया। बकौल हिमांशु गुप्ता बिना किसी कोचिंग के अपने पहले UPSC अटेम्पट में फेल हो गया। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी, बल्कि इससे इससे मेरा आईएएस अधिकारी बनने का संकल्प और मजबूत हुआ।
एक नहीं, तीन बार पास की UPSC परीक्षा!

फिर मैंने दोगुनी मेहनत की और 3 और प्रयास किए। मैंने परीक्षा भी पास की, लेकिन रैंक हासिल नहीं की। दूसरे प्रयास में भारतीय रेलवे यातायात सेवा (IRTS) के लिए चयन हुआ, वंही तीसरे प्रयास में भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के लिए चुना गया। लेकिन मुझे IAS बनना था, इसके लिए चौथे प्रयास के बाद मैं आखिरकार एक IAS Officer बन गया।
आज देशभर के युवाओ के लिए प्रेरणा है!

फ़ेसबुक पर हिमांशु गुप्ता की कहानी पढ़कर यूजर्स उनकी तारीफ कर रहे हैं। उनकी कड़ी मेहनत और लगन के जज्बे को लोग सलाम कर रहे हैं। वंही हिमांशु गुप्ता कहते हैं माता-पिता को अपनी सैलरी देना एक यादगार पल रहा। बाकई आज हिमांशु गुप्ता उन बच्चो के लिए प्रेरणा है जो गरीबी का रोना रोते रहते है।