मिलिए उस बहादुर हिंदू महिला से, जिसने जान पर खेलकर 15 मुस्लिम भाइयो की जिंदगी बचाई!

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Madhulia Singh

राजस्थान की राजधानी जयपुर से क़रीब 180 किलोमीटर दूर बसे करौली शहर में जली हुई दुकानें और चप्पे-चप्पे पर पुलिस का पहरा दो अप्रैल की शाम को हुई हिंसा की कहानी बयान कर रहे हैं। लगभग 15 दिनों से आप सभी सिर्फ हिंसा, राजनीति, आरोप-प्रत्यारोप और कर्फ्यू की ख़बरें सुन-देख और पढ़ रहे होंगे। मगर, यह खबर नफरत के दौर में इंसानियत की मिसाल बनकर सामने आईं मधुलिका सिंह के बारे में है।

48 वर्षीय मधुलिका के पति पांच साल पहले गुजर गए थे तब से वह अपने दो बच्चों की परवरिश करने के लिए कपड़ों का व्यापार करती हैं। करौली हिंसा वाले दिन जब लोगों के सिर पर खून सवार हुआ तो इस 'देवी' ने हौंसला रखते हुए लगभग 16 लोगों को अपने यहां शरण दी। ऐसा करते समय उन्होंने यह नहीं देखा कि वो जिसकी जान बचा रही हैं वो हिन्दू है या मुसलमान। 

15 लोगो की जिंदगी बचाने बाली मधुलिका सिंह?

BBC की एक रिपोर्ट अनुसार, दो अप्रैल की शाम नव संवत्सर के अवसर पर निकाली जा रही शोभायात्रा के दौरान सांप्रदायिक हिंसा की लपटे देखते ही देखते शहर भर में फ़ैल गई। इसके बाद दुकानों, मकानों, वाहनों में आगजनी, पत्थरबाजी और भगदड़ का माहौल पूरे शहर ने देखा। लेकिन, उसी समय घटना स्थल फूटकोटा से क़रीब सौ मीटर की दूरी पर सीताबाड़ी के सिटी मॉल में आपसी सौहार्द और भाईचारे की मिसाल भी बन रही थी। 

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Image Source: Hindustan

मधुलिका सिंह सीताबाड़ी इलाक़े के सिटी मॉल में कपड़ों की दुकान चलाती हैं। माॅल मधुलिका सिंह के भाई संजय सिंह का है। माॅल में दुकान चलाने वाले दुकानदार दानेश ने इस वाकये की पुष्टि की है। जुलूस जब बाजार में पहुंचा तो घर की छतों से पत्थर फिंकने लगे। इसके बाद हिंसा भड़क गई और आगजनी भी हुई। 

मधुलिका सिंह के अनुसार यह घटना  5 से 6 बजे के बीच की है। करौली शहर में हिंसा और आगजनी हो रही थी। सिटी मॉल के बाहर उपद्रव हो रहा था। मधुलिका सिंह बताती है कि "मैं अपनी दुकान में बैठी थी। तभी हल्ला सुनाई दिया. मैंने बाहर निकल कर देखा तो दुकानदार अपनी दुकानें बंद कर रहे थे। मेरे पूछने पर वो बोले कि बाहर लड़ाई हो गई है। बाहर से कुछ लोगों को आते देख दुकानदार डर गए थे। तब उन्होंने आ कर मुझसे कहा कि दीदी हमें बचा लो।" 


उन्होंने बताया, "हिंदू और मुस्लमान दोनों ही डर गए थे, ये सभी दुकानदार थे। उन्हें डर था कि बाहर निकले तो हम पर हमला हो जाएगा। इसके बाद मधुलिका सिंह ने अपने माॅल के सभी हिंदू- मुस्लिम दुकानदारों को बाहर जाने से रोक दिया। भीड़ को ललकार कर उनके सामने ढाल बनकर खड़ी हो गई। 


मधुलिका राजपूत ने हिम्मत दिखाई और इंसानियत के नाते सभी दुकानदारों को अपने कमरे में ले गईं। उनमें 15 मुस्लिम भाई और तीन हिंदू भाई थे। उनको चाय पानी पिलाया और फिर हिम्मत बंधाई कि जब तक सब कुछ ठीक नहीं होता यहीं रहो। मधुलिका सिंह ने माल के अंदर से ताला लगा दिया। उपद्रवी पूछ रहे थे यहा कोई छिपा तो नहीं है। मधुलिका सिंह जवाब ना में दिया।

'हमें पीटते और दुकानों में आग लगा देते'

हिंदुस्तान की एक खबर अनुसार, माॅल में दुकान चलाने वाले दुकानदार दानेश ने बताया कि हिंसा होने पर दुकान के ताले भी नही लगा पाए। गली में भीड़ आ गई। जिसे देखकर वापस माॅल में आ गया। ऊपर से दीदी मधुलिका सिंह आई। हमें कमरे में ले गई, चाय पिलाई। दीदी ने जब ऊपर घर में आने के लिए बोला, तब हमें विश्वास हो गया था कि अब चिंता की बात नहीं है।  


अगर दीदी ऐसा नहीं करती तो बहुत मुश्किल हो जाती। बाहर जाते तो हो सकता है हमें पीटा जाता या हमारी दुकानों में आग लगाई जा सकती थी। तालिब खान और समीर खान का कहना है कि दीदी की वजह से हमें सुरक्षित जीवन मिल सका। इन सभी का कहना है कि अचानक हुए घटनाक्रम से कुछ समझ नहीं पाए। अगर दीदी ना होती तो बहुत नुकसान होता। 

चार घंटे तक नीचे खड़ी रहीं 

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Image Source: One India

Karauli के एक दुकानदार मोहम्मद तालिब ने कहा, जब बाहर भगदड़ मची और पत्थरबाजी शुरू हुई तो मधुलिका दीदी ने उन्हें हमें बुलाया। उन्होंने हमसे कहा कि आप टेंशन न लें मैं आपके लिए यहां हूं। दीदी कम से कम चार घंटे तक नीचे खड़ी रहीं। इस दौरान उपद्रवी उनसे लगातार गेट खोलने की कहते रहे लेकिन उन्होंने गेट नहीं खोला। 

कौन है मधुलिका सिंह?

एक सामान्य कदकाठी वालीं 46 साल की मधुलिका सिंह जादौन एक कारोबारी हैं। उनका ससुराल सवाई माधोपुर ज़िले में है, मधुलिका सिंह के दो बच्चे हैं। वह अपने पति की मृत्यु के बाद से पिछले पांच वर्षों से कपड़ों की शॉप चलाती है। मधुलिका के अनुसार ये हिंदुस्तान है और हम राजपूत हैं। हमारा धर्म दूसरे की रक्षा करना है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो। 

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शोभायात्रा पर मुस्लिमों द्वारा पथराव की कहानियों को दरकिनार करते हुए उन्होंने कहा, "इन लड़कों ने तो नहीं किया फिर इन्हें सजा क्यों मिले, मेरी अंतरात्मा मुझे कचोटती यदि मैं इनका खून बहता देखती। मैंने इंसानियत के नाते उन लोगों को बचाया। ऐसा करते समय उन्होंने यह नहीं देखा कि वो जिसकी जान बचा रही हैं वो हिन्दू है या मुसलमान।