गंगा बाढ़ ने छीना सबकुछ तो स्टेशन पर बेचने लगा चाय, अब गरीबी से लड़ते हुए बन गया दरोगा!

इंसान की दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत उससे कुछ भी संभव करवा सकती है। इसलिए जिंदगी में अगर कुछ करने का जज्बा हो तो गरीबी और मजबूरी भी आड़े नहीं आ सकती है। और इसे साबित कर दिखाया है कटिहार के चाय बेचने वाले सुकरात सिंह ने। जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन को अपना ऐसा हथियार बनाया कि अब दरोगा बनकर निकले। आमतौर पर ऐसी बातें किताबी लगती हैं लेकिन यह सच है। जी हां, तो चलिए हम आपको बताते है चाय बेचने से लेकर दरोगा बनने तक सुकरात जीवन संघर्ष।
स्टेशन पर चाय बेचने बाला बना दरोगा!
ये कहानी है कटिहार रेलवे स्टेशन पर अपने पिता के साथ चाय बेचने वाले युवक सुकरात सिंह की। जिनके पास संसाधनों की कमी थी, लेकिन हौसले कमजोर नहीं थे। उन्होंने कोशिश शुरू की, और सहारा मिला इंटरनेट का। उन्होंने सिलेबस मार्क कर लिया था, फिर उसके हिसाब से सब्जेक्ट इंटरनेट पर सर्च करते और पढ़ते। दुकान से खाली रहते वह इंटरनेट पर तैयारी में लग जाते। और अब उनकी कोशिश सफल भी हुई और उन्होंने दरोगा बनकर मिसाल कायम की है।

सुकरात ने क्या हासिल किया है, ये जाने से जरूरी है कि उन्होंने ये कहां से उठ कर और किन परिस्थितियों में हासिल किया है। उनके लिए यहां तक पहुंचने का सफर बेहद कठिन रहा है। सुकरात ने अपनी छोटी सी जिंदगी में बह सबकुछ देखा, जो एक आम इंसान कभी नहीं देखना चाहेगा। भुखमरी, लाचारी, मेहनत और जीवन संघर्ष।
कुछ साल पहले छिन गया सबकुछ!
कुछ सालो पहले तक सुकरात और उनके परिवार के सामने ज्यादा मुसीबतें नहीं थीं, बह अपने परिवार के साथ कटिहार के मेदनीपुर में रहते जो गंगा किनारे बसा हुआ एक छोटा सा गांव है। खेती-किसानी के दम पर चल रहे उनके परिवार में आर्थिक तंगी भी काफी कम थी। लेकिन किस्मत ने एक साथ ही कई दुख दे दिए, एक रोज गंगा ने अपना विकराल रूप दिखाया और बाढ़ आ गई, जिसमे सुकरात की खेत खलिहान सबकुछ पानी में समा गया।
चाय बेची मगर पढ़ाई नहीं छोड़ी!
विस्थापित परिवार के पास भूखों मरने की नौबत आ गई, तो पूरा परिवार मनिहारी रेलवे स्टेशन के समीप आकर किसी तरह जिन्दगी बसर करने लगा। सुकरात के पिता ने जीविकोपार्जन के लिये स्टेशन पर चाय की दुकान खोल ली, धीरे धीरे सुकरात ने भी अपने पिता के काम में हाथ बंटाना शुरू किया और चाय बेचने लगे... जिससे कि परिवार का पेट भर सके।

इतना सब गंवाने के बाद भी सुकरात के लिए एक बात अच्छी ये थी कि उन्होंने आर्थिक बदहाली में भी हार नहीं मानी और शिक्षा से नाता नहीं तोड़ा। चाय बेचने के दौरान उन्हें जितना भी समय मिलता वह उसमें यूट्यूब की मदद से पढ़ाई करते। उनकी दिली इच्छा वर्दी पहनने की थी। इसी सपने को पूरा करने के लिए वह इंटरनेट, यू-ट्यूब से दरोगा की परीक्षा की तैयारी करते रहे।
रिज्लट आया तो ख़ुशी से झूम उठा परिवार!
बीते दिनों बिहार दरोगा परीक्षा का रिजल्ट घोसित हुआ, बस फिर क्या था सुकरात भी अपना रिज्लट देखने लग गए। ज्यूँ ही उनकी निगाह रिजल्ट लिस्ट में अपने नाम पर पड़ी, तो सुकरात की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। बह पास हो गए और उनका वर्दी पहनने का सपना पूरा हो गया। दूसरे प्रयास में सब इंस्पेक्टर के लिये चयनित हुए। सुकरात बताते हैं कि यदि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कामयाबी जरूर मिलती है। सुकरात अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं।

सुकरात के दरोगा बनने पर गरीब परिवार में खुशहाली छा गई, मिठाइयां बांटी जाने लगी। वंही जब सुकरात के पिता से पूछा गया कि आपको पता है आपका बेटा दरोगा बन गया है? वह चेहरे पर मुस्कान और आंखों में गर्व लिए हुए बोले कि हां पता है। उसने अपनी मेहनत से यह सब पाया है, उसने अपना भविष्य खुद संवारा है। हमे अपने बेटे पर गर्व है।