कर्ज में डूबे किसान पिता ने की थी आत्महत्या, UPSC में 5 बार असफल हुई बेटी ने रचा इतिहास!

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देश में हर बारसंघ लोक सेवा आयोग (UPSC) का रिजल्ट खास रहता है। जिसमे लड़के-लड़कियां गरीब तबके से निकलकर ख़ास मुकाम हासिल कर अपने परिवार का नाम रौशन करते है। इस परीक्षा में बैठने वाले अधिकांश प्रतिभागियों की कहानी प्रेरणादायक होती है। ऐसी ही एक प्रेरक कहानी कर्नाटक से आने वाली अरुणा (Aruna) की भी है। 

अरुणा के किसान पिता ने कर्ज न चुका पाने पर सुसाइड कर लिया था। वे खुद 5 बार UPSC की परीक्षा में फेल हुई लेकिन इस बार छठे प्रयास में वे 308 रैंक के साथ इस प्रतिष्ठित एग्जाम को क्रैक करने में कामयाब रहीं। अरुणा एम की कहानी उन कहानियों में से एक है जो आपको कई बार असफल होने के बावजूद सफलता मिलने तक कड़ी मेहनत करने और खुद पर विश्वास करने के लिए प्रेरित करती है। तो आइये जानते है, अरुणा के संघर्ष की कहानी। 

कर्ज में डूबे किसान पिता ने की थी आत्महत्या!

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट मुताबिक, अरुणा (Aruna) कर्नाटक की बैकवर्ड क्लास सोसायटी से आती हैं। वे 5 भाई-बहनों में से एक हैं। उनके पिता किसान थे, जिनका एकमात्र सपना था कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर जिंदगी में आगे बढ़ें। इसके लिए उन्होंने बैंक से कर्ज लेकर बच्चों को पढ़ाया। धीरे-धीरे कर्ज आगे बढ़ता गया, जिसे वे चुका नहीं पाए।  बैंक वालों के लगातार तकादे और मकान की नीलामी की चेतावनी के डर से उन्होंने वर्ष 2009 में परेशान होकर सुसाइड कर लिया। 

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Image Source: Zee News

उस वक्त अरुणा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी। वो हमेशा से चाहते थे कि उनकी बेटियां इंडिपेंडेंट बनें। यूपीएससी उनका सपना था। अरुणा कहती हैं- 'मुझे पढ़ाने के लिए उन्होंने जो कर्ज लिया, उसके कारण मैंने अपने पिता को खो दिया। उनकी मौत के बाद मुझे समाज सेवा का मन हुआ। मैं अपने देश के किसानों की सेवा करके अपने पिता की खोई हुई मुस्कान को पाना चाहती थी।'

पहले सिर्फ साधारण नौकरी करना चाहती थीं अरुणा!

पिता के जाने के बाद अरुणा की दो बड़ी बहनें अपने परिवार का समर्थन करने के लिए कुछ वर्षों के लिए काम करने के लिए सहमत हुईं, हालांकि, उनके पिता चाहते थे कि उनकी बेटियां स्वतंत्र हों और उनकी इच्छा थी कि वे यूपीएससी परीक्षा में बैठें। अरुणा जो पांच भाई-बहनों में से तीसरे नंबर पर हैं। अरुणा का पहले यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में बैठने या इसे पास करने का कोई इरादा नहीं था। 

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Image Source: One India

अरुण तो बस इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर एक साधारण नौकरी करना चाहची थीं। और, अधिकांश उम्मीदवारों के विपरीत, सिविल सेवाओं को क्रैक करना अरुणा का पहला लक्ष्य नहीं था। अरुणा ने भले ही अपने लिए इंजीनियर बनने का सपना देखा हो लेकिन जीवन की उसके लिए अलग योजनाएं थीं। अरुणा ने अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए अपनी योजना बदल दी।

पांच बार हुईं फेल और छठी बार गाड़े झंडे!

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Image Source: One India

अरुणा ने कहा कि उन्होंने अपने पिता के सपने को सच करने के लिए सिविल सेवा परीक्षा को पास करने की यात्रा को शुरू की। उन्होंने वर्ष 2014 से शुरू करके एक के बाद एक लगातार 5 बार UPSC की परीक्षा दी लेकिन क्लियर नहीं कर पाईं। पांचों बार फेल होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सिविल सेवा परीक्षा में छठी बार में 308 रैंक हासिल कर इतिहास रच दिया।

जीवन में कभी नहीं लिया आरक्षण का सहारा!

अरुणा बैकवर्ड क्लास से आती हैं लेकिन उन्होंने अपने जीवन में कभी आरक्षण का इस्तेमाल नहीं किया। बड़ी बात ये थी कि कर्नाटक समेत देशभर में पिछड़े वर्ग के लिए OBC कोटा लागू है लेकिन उन्होंने पढ़ाई से लेकर UPSC की परीक्षा में आरक्षण का इस्तेमाल नहीं किया और हर बार अनारक्षित वर्ग के रूप में एग्जाम दिया। पिता की मौत के बाद उन्होंने देश के किसानों के लिए कुछ करने की ठानी।

अरुणा कहती है कि, "मेरे पिता का सपना सच हो गया। अपने इंजीनियरिंग कोर्स के दौरान, मुझे शिक्षा प्रदान करने के लिए किए गए कर्ज के कारण मैंने अपने पिता को खो दिया। उनकी मृत्यु के बाद मुझे समाज की सेवा और किसानों की सेवा की भावना मन में आई। मैं अपने देश के किसानों की सेवा करके अपने पिता की खोई हुई मुस्कान को पाना चाहती थी।''

ग्रामीणों युवाओं के लिए खोली कोचिंग!

अरुणा कहती है कि, कि मैंने अपने पिता का सपना तो पूरा कर दिया, लेकिन मेरे देश के किसानों की सेवा करने और उन्हें मेरे पिता की तरह आत्महत्या का प्रयास नहीं करने देने का मेरा सपना अब शुरू होगा। अरुणा हमेशा से समाज के लिए कुछ करना चाहती थीं। यूपीएससी परीक्षा में लगातार मिल रही असफलता के बाद भी उनकी इस सोच में कोई फर्क नहीं आया। उन्होंने बेंगलूरु में अपने नाम से 'अरुणा अकडेमी' शुरू किया। 

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Image Source: asianetnews

यहां वो ग्रामीणों युवाओं को यूपीएससी परीक्षा में बैठने के लिए मोटिवेट करती हैं। साथ ही तैयारी करवाती हैं। अरुणा कहती है कि, "मैंने पांच बार एग्जाम दिया था और पास नहीं हो पाई थी। इस वजह से मैंने कोचिंग खोलने का सोचा। इसका एक ही मकसद था, ग्रामीण युवाओं की मदद करना था।"