448 साल पुरानी तुलसीदास के हाथों से लिखी गई असली 'रामायण' की पांडुलिपि यंहा रखी हुई है!

गुरुवार, 4 अगस्त को श्रीरामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती है। तुलसीदास जी का जन्म संवत् 1554 में सावन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर हुआ था। उनका जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में राजापुर गांव है। यहीं श्रीरामचरित मानस मंदिर स्थित है।

तुलसीदास जी के जन्म समय को लेकर मतभेद भी हैं। कुछ विद्वान उनका जन्म सन् 1511 मानते हैं। राजापुर गांव में तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस ग्रंथ की रचना की थी। संवत् 1680 में 126 वर्ष की आयु में तुलसीदास जी की मृत्यु हुई थी।
चित्रकूट में सुरक्षित हैं अयोध्याकांड की पांडुलिपियां!
भगवान श्रीराम को लेकर तमाम ग्रन्थ और पुस्तकें प्रकाशित की गईं लेकिन जो लोकप्रियता तुलसीदासजी द्वारा लिखी गई श्रीरामचरितमानस को मिली, वह किसी अन्य को नहीं मिली। स्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई श्रीरामचरितमानस की हस्तलिखित पांडुलिपि आज भी चित्रकूट में सुरक्षित रखी हुई हैं। इनमें मानस के अयोध्या कांड की पांडुलिपियां रखी हुई हैं।

इनके संरक्षण का काम यहां का मंदिर कर रहा है, जो गोस्वामी तुलसीदास का साधना स्थल भी बताया जाता है। श्रीरामचरित मानस मंदिर के प्रमुख 79 वर्षीय पं. रामाश्रय त्रिपाठी हैं। वे तुलसीदास जी की शिष्य परंपरा की 11वीं पीढ़ी के प्रमुख हैं। तुलसीदास जी के पहले प्रमुख शिष्य गणपतराम उपाध्याय थे। उनके परिवार के लोग ही इस मंदिर के प्रमुख होते हैं।
चित्रकूट (उ०प्र) के राजापुर गांव में महा कवि तुलसीदास के जन्मस्थली में तुलसीदास द्वारा हस्तलिखित रामचरितमानस के मूलप्रति का दर्शन व श्रवण करते मा० जितिन प्रसाद,लोक निर्माण मंत्री उत्तर प्रदेश l pic.twitter.com/3JZP32nFgu
— Shashi Mohan Agnihotri (@shashimohanagni) August 1, 2022
आईजी के सत्यनारायण चित्रकूटधाम मंडल,एस पी अंकित मित्तल ने थाने का वार्षिक निरीक्षण करने के बाद। तुलसी घाट पहुंचकर नौका विहार किया वा गोस्वामी तुलसीदास जी की हस्तलिखित रामायण के दर्शन किए।
— Ghanshayam Dwivedi (@GhanshayamDwiv1) February 19, 2021
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यहां के आठवें प्रमुख मुन्नीलाल की कोई संतान नहीं थी। तब उन्होंने अपनी बहन के बेटे ब्रह्मदत्त त्रिपाठी को गोद लिया और उन्हें इस मंदिर का प्रमुख नियुक्त किया। ब्रह्मदत्त त्रिपाठी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र रामाश्रय त्रिपाठी 15-16 वर्ष की उम्र से ही इस मंदिर की देखभाल कर रहे हैं।

पीढ़ी दर पीढ़ी पांडुलिपियों के संरक्षण में लगे परिवार के सदस्य और मंदिर के पुजारी में बताया कि मंदिर में तुलसीदास जी द्वारा लिखी गई श्रीरामचरितमानस के पांडुलिपियां यहां सदियों से सुरक्षित रखी गई हैं। साथ ही मंदिर में श्रीराम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान जी के साथ ही तुलसीदास जी की भी प्रतिमा स्थापित है।
2 साल 7 महीने और 26 दिनों में हुई थी ग्रंथ की रचना!
तुलसीदास जी ने संवत् 1631 में 76 वर्ष की आयु में श्रीरामचरित मानस की रचना शुरू की थी। इस ग्रंथ को पूरा होने में 2 साल 7 माह और 26 दिन का समय लगा। संवत् 1633 के अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी पर ये ग्रंथ पूरा हो गया था। अभी संवत् 2079 चल रहा है, इस हिसाब से ये पांडुलिपियां 448 साल पुरानी हैं।

150 पेज की हर पांडुलिपि पर 7 लाइन लिखी है। रामचरित मानस अवधि भाषा में है, जो हिंदी भाषा की एक बोली है। तुलसीदास जी के समय में कागज का आविष्कार हो चुका था। तुलसीदास जी ने लिखने के लिए आंवले का रस, बबूल का गोंद, सूखा काजल और अन्य चीजें मिलाकर स्याही बनाई थी और लकड़ी की कलम से ये ग्रंथ लिखा था।
जापानी टिशु पेपर और केमिकल से की गई है संरक्षित!
खुद को मंदिर का उत्तराधिकारी बताने वाले रामाश्रय त्रिपाठी बताते हैं, "2004 में भारत सरकार के पुरातत्व विभाग, दिल्ली द्वारा पांडुलिपि सुरक्षित करने के लिए प्रयास किया गया। पुरातत्व विभाग ने जापान में बने पारदर्शी टिशु पेपर को इस पर लगाया है। साथ ही कागज को लंबे समय तक सुरक्षित रखने वाले कैमिकल्स का भी इस्तेमाल किया है।"

सुरक्षा की दृष्टि से अधिकारियों को एक साथ पांडुलिपि देने से इनकार कर दिया गया था। 4-4 पेज दिल्ली भेजे जाने थे, जब ये संरक्षित होकर दिल्ली से आ जाते थे तो दूसरे पन्ने भेजते थे। विद्वानों ने इसके कागज को तुलसी कालीन माना है और लिपि को तुलसी हस्तलिपि माना है। तुलसीदास का प्रमाणिक हस्तलेख काशी नरेश के संग्रहालय में सुरक्षित है।

अयोध्या काण्ड की इन पांडुलिपियों में हर हस्तलिखित प्रति में ‘श्री गणेशाय नमः और श्री जानकी वल्लभो विजयते’ लिखा हुआ है। तुलसीदास के पहले शिष्य गणपतराम के वंशज आज भी इस तुलसी और मानस मंदिर में पुजारी बनते चले आ रहे हैं।
सुरक्षा के लिए यंहा दिन-रात रहता है पुलिस का पहरा!
दिन-रात यहां सुरक्षा के लिए पुलिस मौजूद रहती है। प्रशासन द्वारा पुलिस कर्मी यहां भेजे जाते हैं। उन्हें डर भी रहता है कि इसको कभी कोई चोर या अन्य नुकसान न पहुंचा दे। साथ ही मंदिर पुजारियों द्वारा भी इसे सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है, जिससे किसी तरह का बातावरण इसको नुकसान ना पहुंचा दे।