राजस्थान का ताजमहल: दूधिया संगमरमर से बना शाही स्मारक, जो चांदनी रात में दमकता है!

इतिहासकारों के अनुसार, विश्व प्रसिद्ध आगरा ताजमहल का निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में करवाया था। जिसे दुनिया ने प्रेम की निशानी कहा। लेकिन क्या आप जानते है कि आगरा ताजमहल की तरह सफ़ेद दूधिया संगमरमर से बना एक और शाही स्मारक है, जिसे मारवाड़ का ताजमहल कहा जाता है। तो आइये जानते है, इस खूबसूरत स्मारक का इतिहास क्या है?
दूधिया संगमरमर से बना मारवाड़ का ताजमहल!
अपनी बेगम मुमताज की याद में शाहजहां ने प्रेम के प्रतीक के रूप में ताजमहल का निर्माण कराया था। वहीं मारवाड़ के एक महाराजा ने अपने पिता की याद को चिरस्थाई रखने के लिए संगमरमर पत्थर से ताजमहल की शैली में ही भव्य इमारत का निर्माण कराया। यही कारण है कि विश्व प्रसिद्ध मेहरानगढ़ फोर्ट के सामने की पहाड़ी पर स्थित जसवंत थड़ा शानदार कारीगरी के कारण मारवाड़ का ताजमहल कहा जाता है।

जोधपुर के मेहरानगढ़ किले की तलहटी में सफेद संगमरमर से बना शाही स्मारक जसवंतथड़ा किसी अजूबे से कम नहीं है। सफेद संगमरमर से बना होने के कारण ही इसे ताजमहल सी संज्ञा दी गई है। खास बात ये है कि दोनों ही जगह लगा पत्थर राजस्थान के मकराना का ही है।
सूरज की रोशनी में हो जाता है और खूबसूरत!
जसवंतथड़ा की दीवारों में लगी संगमरमर की कुछ शिलाएं ऐसी भी हैं, जिनसे सूर्य की किरणें आरपार जाती हैं। सूर्य की पहली किरण के साथ इस स्मारक की सुंदरता देखते ही बनती है। सफेद दूधिया रोशनी में कला का बेजोड़ नमूना बहुत ही खूबसूरत नजर आता है।

इसके पास बहती झील इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देती है। यह लाल पत्थर के पहाड़ के बीच धवल आभा लिए अलग ही नजर आता है। चांदनी रात में इसके वास्तु सौंदर्य में निखार आ जाता है।

मुख्य भवन के चारों तरफ दीवारों पर पारदर्शी संगमरमर की शिलाए लगी है। इन पत्थरों से होकर रोशनी अंदर पहुंचती है। इसके चारों तरफ दस बड़ी और 28 छोटी छतरियां बनी हुई है। इसका निर्माण ताजमहल निर्माण शैली की तर्ज पर किया हुआ है।
इस ताजमहल पर होता है शाही अंतिम संस्कार!
आपको बता दे, थड़ा(सीनोटाफ) का तात्पर्य एक ऐसी समाधि जो केवल स्मारक है, जहां पर सम्बन्धित व्यक्ति का दाह संस्कार किया गया हो। इसे शून्य समाधि भी कहा जाता है। महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय की याद में उनके उत्तराधिकारी महाराजा सरदार सिंह ने इसे बनवाया था। जिसे बाद में जोधपुर के राजपरिवारों के दाह संस्कार के लिए इस स्मारक का इस्तेमाल किया जाने लगा।

इसके चारों तरफ दस बड़ी और 28 छोटी छतरियां बनी हुई है। इन छतरियों की बगल में ही राजपर वार के सदस्यों का अंतिम संस्कार किया जाता है। मुख्य भवन में जोधपुर के अब तक के सभी महाराजाओं की तस्वीरें लगी है। यहां महारानियों के स्मारक भी हैं। दो वर्ष पूर्व राजघराने की राजमाता कृष्ण कुमारी का अंतिम संस्कार भी यहीं किया गया था।
राजस्थानी और मुगल कला का है बेजोड़ नमूना!
ताजमहल के समान ही इसका निर्माण मकराना के सफेद संगमरमर पत्थर से किया गया। 19 वीं शताब्दी में इसका निर्माण शुरू किया गया था, उस बक्त इसके निर्माण पर 2,84,678 रुपए खर्च हुए थे। मुख्य स्मारक एक मंदिर के आकार में बनाया गया था। जसवंतथड़ा के आर्किटेक्ट बुद्धमल और रहीमबख्श थे।

जसवंतथड़ा के मुख्य अहाते में घुसने के लिए दो बार सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। सामने की ओर निकले बरामदे मुगलों से प्रभावित हैं। इसके लिए जोधपुर से 250 किलोमीटर दूर मकराना से संगमरमर का पत्थर मंगवाया था। पहले जसवंतथड़ा के पास बने जलाशय का इस्तेमाल शाही रीति-रिवाजों के लिए किया जाता था, लेकिन अब यहां ऐसा कुछ नहीं होता।

स्मारक का आंतरिक भाग खूबसूरत नक्काशी और कलाकृतियों से सजाया गया है। स्मारक के आसपास बनाए गए मेहराब और स्तंभ पर्यटकों को प्रभावित करते हैं। संगमरमर की बनी इस संरचना में राजस्थानी और मुगल कला का बेजोड़ नमूना देखने को मिलता है।