माँ देखना चाहती थी दुर्लभ नीलकुरिंजी फूल, बेटों ने कंधे पर बैठाकर माँ का सपना किया पूरा!

श्रवण कुमार की कहानी याद है? आज भी जब कभी आदर्श बेटे का उदाहरण देना हो तो सभी श्रवण कुमार का उदाहरण देते हैं जिसने अंतिम सांस तक माता-पिता की सेवा की। लेकिन कलयुग में श्रवण कुमार ढूढ़ने से भी कम ही मिलते है, क्यूंकि जंहा बेटा जवान हुआ उसको अपने ही माँ-बाप बोझ लगने लग जाते है... ऐसे में सेवाभाव तो छोड़ ही दीजिये। परन्तु कुछ मामलो में बेटा आज भी अपने माँ-बाप की सेवा करते दिख जाते है, जैसा कि एक उदाहरण केरल में देखने को मिला।
पूरा किया वृद्ध मां का सपना!
दरअसल, केरल के कोट्टयम ज़िले के मुत्तूचिरा की रहने बाली एलिकुट्टी पॉल बैंगनी रंग के दुर्लभ नीलकुरिंजी फूल देखना चाहती थी, जो पश्चिमी घाट की पहाड़ियों पर 12 साल में एक बार खिलते हैं। लेकिन एलिकुट्टी पॉल की उम्र लगभग 87 वर्ष हो चुकी है, तो ऐसे में वृद्ध शरीर उनका साथ नहीं दे रहा था... जिससे बह अपने मन की इच्छा पूर्ति कर सके।

वंही जब अपनी माँ की इच्छा के बारे में उनके बेटे रोजन और सत्यन को पता चला तो उन्होंने इसे पूरा करने की ठानी और अपनी माँ से बात की तो एलिकुट्टी पॉल (Elikutty Paul) ने अपने एक बेटे से कहा कि वह इडुक्की के पड़ोसी जिले में खिले दुर्लभ फूलों को देखना चाहती हैं। बस फिर क्या था, दोनों बेटो ने बैंगनी रंग के दुर्लभ नीलकुरिंजी फूलो की मालूम किया तो पता चला कि ये दुर्लभ फूल इन दिनों पड़ोस के इडुक्की ज़िले में खिले हुए है।

वंही जब अपनी माँ की इच्छा के बारे में उनके बेटे रोजन और सत्यन को पता चला तो उन्होंने इसे पूरा करने की ठानी और अपनी माँ से बात की तो एलिकुट्टी पॉल (Elikutty Paul) ने अपने एक बेटे से कहा कि वह इडुक्की के पड़ोसी जिले में खिले दुर्लभ फूलों को देखना चाहती हैं। बस फिर क्या था, दोनों बेटो ने बैंगनी रंग के दुर्लभ नीलकुरिंजी फूलो की मालूम किया तो पता चला कि ये दुर्लभ फूल इन दिनों पड़ोस के इडुक्की ज़िले में खिले हुए है।
माँ को कंधे पर बैठाकर पहाड़ो पर चले बेटे!
मालूम हो कि एलिकुट्टी पॉल उम्र संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं, जिसकी वजह से वह ठीक ढंग से ऊंचाई या पहाड़ों पर नहीं चढ़ सकतीं। इसके लिए रोजन और सत्यन ने 100 Km जीप से सफ़र करके मुन्नार के पास स्थित कल्लीपारा हिल्स तक पहुंचे। गंतव्य तक पहुंचकर उन्हें पता चला कि ऊपर तक जाने की कोई सड़क नहीं है।
वे अपनी मां के सपने को छोड़ना नहीं चाहते थे, फिर दोनों बेटों ने अपनी बुजुर्ग मां को अपने कंधों पर उठा लिया और पहाड़ी की चोटी पर लगभग 1.5 किमी की चढ़ाई की, जो नीलकुरिंजी फूलों के साथ बैंगनी रंग के मैदान में बदल गई। इस तरह बेटों ने मां को दुर्लभ फूल दिखाए।
12 साल में एक बार खिलते हैं दुर्लभ नीलकुरिंजी फूल?
दावा किया जाता है कि पश्चिमी घाट या वेस्टर्न घाट्स में 12 साल में एक बार खिलते हैं नीलकुरिंजी के फूल। सबसे प्रसिद्ध नीलकुरिंजी खिलने वाला स्थान इडुक्की जिले का मुन्नार हिल स्टेशन है, मुन्नार में अगला नीलकुरिंजी खिलना 2030 में ही होगा। मुन्नार के अलावा भी कुछ क्षेत्रों में ये फूल खिलते हैं। इस साल कर्नाटक के चिकमगलूर और केरल के कल्लीपारा में ये फूल खिले हैं।