दवंगों के डर से पिता नहीं कर पाए थे घुड़चढ़ी, अब बेटी को हाथी पर घुमाकर किया सपना पूरा!

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hanthi par dulhan

गुजरात के नाटू परमार वर्षों पहले अपना एक सपना पूरा नहीं कर पाए थे। और यह सपना था अपनी शादी में घुड़चढ़ी करने का।  सालों पहले सवर्णों की प्रतिक्रिया के डर से नाटू परमार अपनी शादी में घोड़े पर नहीं बैठ पाए थे, लेकिन आज उन्होंने बारात में अपनी बेटी को हाथी पर बिठा कर कन्या सशक्तिकरण का एक उत्तम उदहारण पेश किया है। वर्षों बाद उनकी बेटी अपनी शादी के एक दिन पहले हाथी पर चढ़ी और गांव में घूमी तो नाटू के सपनों को उड़ान मिली। क्या है पूरा मामला? आइये जानते है। 

क्या है पूरा मामला?

गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के सुरेंद्रनगर इलाका, जहां आज भी दलित व्यक्ति द्वारा निकाले जाने वाले प्री वेडिंग जुलूस को लेकर हर महीने एक एफआईआर दर्ज होती हो वहां दो दशक पहले की स्थिति क्या होगी? जरा सोच कर देखिये। और इसी उत्पीड़न के शिकार हुए दलित समुदाय से आने बाले नाटू परमार। नाटू की जब शादी होने को आई तो ऊंची जाति के लोगो ने घुड़चढ़ी का विरोध किया। 

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नतीजन, गांव में ऊंची जाति के समुदायों के विरोध के डर से न तो वह घोड़ी चढ़े और न ही बारात निकाली। और उन्होंने इसे दिल पर पत्थर रख कर स्वीकार भी कर लिया था। लेकिन उन्होंने तभी तय कर लिया था कि वह अपने बच्चों के साथ ये नहीं होने देंगे। 

बारात में अपनी बेटी को हाथी पर बिठाया!

शुक्रवार को जब उनकी 23 वर्षीय बेटी भारती ने अपनी शादी से पहले घोड़ी नहीं बल्कि एक हाथी की सवारी की तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया। नटू के समुदाय में कभी बेटियों के जुलूस नहीं निकलते हैं लेकिन ये जुलूस सिर्फ एक जुलूस नहीं था बल्कि समाज के लिए एक पावरफुल मेसेज था। 

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रंगों से सजा हाथी अहमदाबाद से बुलाया गया था। इस हाथी पर "बेटी को पढ़ायें, बेटी को अधिकार दें" के मेसेज के साथ दो फ्लेक्स भी लगाये गए थे। साथ में बाबा साहेब आम्बेडकर की फोटो भी रखी गई थी। सन्देश साफ़ था कि लिंग या जाति के आधार पर समाज में भेदभाव ना हो। जो अधिकार एक सवर्ण को संबिधान ने दिए वही अधिकार दलित से ना छीने जाए। 

बच्चों ने भी दिया बड़ा संदेश!

भारती वर्तमान में लिमडी जनरल अस्पताल में जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी (जीएनएम) की डिग्री के साथ स्टाफ नर्स हैं और तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। नटू परमार के 19 और 21 साल के दो बेटें है जो की नर्सिंग का कोर्स कर रहे हैं। जिन्होंने महिला सशक्तिकरण का मेसेज देने के लिए अपने स्कूल रिकार्ड्स में अपने पिता के बदले अपनी माता का नाम लिखवाया है। 

आपको बता दे, हाथी का उपयोग करने के लिए पुलिस परमिशन लगती है लेकिन इस इवेंट में कोई पुलिस प्रोटेक्शन नहीं ली गई थी। परमार अपने दलित समाज को मेसेज देना चाहते हैं कि किसी से डरें नहीं, हम सब एक समान है और कानून हमारी रक्षा के लिए हैं।