जानिए, मां यशोदा की रसोई से निकले फेमस मथुरा पेड़ा सीक्रेट, जो प्रभु श्रीकृष्ण का है फेवरेट!

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19 अगस्त यानी आज श्रीकृष्ण का जन्मदिन है। जन्माष्टमी से पहले भगवान कृष्ण को चढ़ने वाले महाभोग की तैयारियां एक दिन पहले से शुरू हो गई। और इस महा प्रसाद में सबसे मुख्य होता है मथुरा का पेड़ा। सामान्‍य तौर पर पेड़ा मथुरा में बनाई जाने वाली एक तरह की मिठाई (Sweet) है, लेक‍िन यह पेड़ा सीधे तौर पर श्री कृष्‍ण से जुड़ा है। 

मान्‍यताओं के अनुसार यह मिठाई भगवान कृष्ण को अति प्रिय है।   जन्माष्टमी पेड़े के स्वाद के बिना अधूरी मानी जाती हैं। हर साल जन्माष्टमी पर पेड़े बनते हैं जिनसे भगवान कृष्ण को भोग लगाया जाता है। ऐसे में आज हम आपको बताते है कि कैसे मां यशोदा की रसोई से निकला पेड़ा मथुरा की पहचान बन गया। तो चलिए जानते है मथुरा पेड़ा का पौराणिक इतिहास। 

मां यशोदा की रसोई से निकले पेड़े का सीक्रेट!

मथुरा के पेड़े का लेकर कोई प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है। लेकिन जन सामान्‍य में इसको लेकर कई सारी किवदंती फेमस है। मथुरा के पेड़े द्वापर युग का एक किस्सा काफी प्रचलित है। ये किस्सा यहां के सभी हलवाइयों को रटा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण की मां यशोदा ने दूध उबालने के लिए रख दिया था, लेकिन वह भूल गई. कुछ देर बाद दूध उबाल आते-आते बहुत ही गाढा हो गया। 

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तब यशोदा ने उसमें चीनी मिलाकर पेड़े बना दिए और कृष्ण को खिला दिया। मां की बनाई हुई यह मिठाई कान्हा को बहुत पसंद आई। जिसके बाद मथुरा में भगवान कृष्ण को पेड़ा का प्रसाद चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आज भी भगवान के जन्म पर चढ़ने वाले छप्पन भोग में पेड़े को जरूर शामिल किया जाता है।

मथुरा में कहां से खरीदें स्वादिष्‍ट पेड़े?

समय बढ़ने के साथ ही पेड़े की मांग भी बढ़ी है। मौजूदा समय में मथुरा की गली -गली में पेड़े बनाए जाते हैं। मथुरा में वैसे तो हर जगह आपको पेड़े की दुकानें मिल जाएंगी. लेकिन असली और स्वादिष्ट पेड़े के लिए आपको कुछ दुकानों पर ही भरोसा करना होगा। मथुरा में सबसे पुरानी दुकान तोताराम हलवाई की है। 1832 में उन्होंने पेड़ा बनाने का काम शुरू किया। आज तक उनके वंशजों की चौथी पीढ़ी इस व्यवसाय को आगे बढ़ा रही है। 

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मथुरा में बृजवासी मिठाईवाला, शंकर मिठाईवाला और बृजवासी पेड़े वाले की दुकान सबसे ज्यादा फेमस है। वहीं यहां की राधे श्याम हलवाई की दुकान भी काफी फेमस है। जो कि सौ साल पुरानी दूकान मानी जाती है। 

वंही दुकान के मालिक ने बताया कि "मथुरा के पेड़े की एक खासियत है कि इन्हें बनाने के लिए दूध को तब तक पकाया जाता है, जब तक कि वो लाल न पड़ जाए। इसके दो फायदे होते हैं। पहला: पेड़े का स्वाद बढ़ जाता है। दूसरा: पेड़ा 50 से 60 दिनों तक खराब नहीं होता।"

तीन तरह के होते हैं मथुरा के पेड़े!

इलायची पेड़ा: बांके बिहारी के प्रसाद में इलायची पेड़ा सबसे ज्यादा चढ़ता है। पेड़ा विक्रेताओं के अनुसार, गाय के दूध को  तेज आंच में पकाकर इस ख़ास पड़े को बनाया जाता है। इसके बाद इसमें स्वाद के लिए इलायची का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए इसका रंग भूरा होता है। इस पेड़े में शक्कर का कम इस्तेमाल होता है, इसलिए डायबिटीज के मरीज भी खा सकते हैं।

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पिस्ता पेड़ा: इलायची पेड़ा की तरह ही पिस्ता पेड़ा भी गाय या भैस के दूध से तैयार किया जाता है। लेकिन इसमें इलायची की जगह स्वाद के लिए पिस्ता का प्रयोग किया जाता है। इस पेड़े में पिस्ता पीसकर डाला जाता है और तैयार होने के बाद इसे हरे पिस्ते के बुरादे से सजाया जाता है। मान्यता के अनुसार, ये पेड़ा राधा रानी का प्रिय पेड़ा है।

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मलाई पेड़ा: मलाई पेड़ा जन्माष्टमी में खास तौर पर तैयार किया जाने बाला ख़ास पेड़ा होता है। इसका रंग भूरा या लाल नहीं बल्कि सुर्ख सफ़ेद होता है। इसलिए इसे बनाने में केवल मावा और मलाई का प्रयोग होता है। यह पेड़ा जन्माष्टमी के दिन छप्पन भोग में शामिल किया जाता है। 

नेहरू और अटल भी थे मथुरा पेड़ा के फैंस!

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भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाला नेहरू मथुरा पेड़ा के दीवाने थे, बाह अक्सर यूपी से दिल्ली आने बाले नेताओ को मथुरा पेड़ा लाने की फरमाइस करते थे। वंही बात करे भाजपा के पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी की तो बह मथुरा के खान-पान के बेहद शौक़ीन हुए करते थे। बे अक्सर मथुरा की फेमस प्रेम हलवाई की दुकान में बने कचौड़ी और जलेवी की चाह रखते थे।