करोड़ों की दौलत और आलिशान जिंदगी ठुकराकर हीरा व्यापारी की 8 साल की बेटी बनी संन्यासी!

देश के युवाओं पर एक तरफ पश्चिमी सभ्यता हावी हो रही है। वहीं, दूसरी तरफ ऐसे भी बच्चे हैं, जो संयम और आध्यात्म की तरफ मुड़ रहे हैं। इसीक्रम में गुजरात में सूरत के एक हीरा कारोबारी की 8 साल की बेटी ने आलीशान जिंदगी त्याग कर संन्यास धारण करने का फैसला लिया है। यह सुनकर आप भी हैरत में होंगे. मगर, खेलने-कूदने और नाचने की उम्र में ही डायमंड कारोबारी धनेश की उत्तराधिकारी बेटी बुधवार को जैन धर्म ग्रहण कर संन्यासिनी बन गई। क्या है पूरा मामला? चलिए हम आपको बताते है।
हीरा कारोबारी की 8 साल की बेटी बनी संन्यासिनी!
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सूरत के बड़े हीरा कारोबारी धनेश संघवी की बिटिया देवांशी संघवी दीक्षा लेकर साध्वी दिगंतप्रज्ञाश्री बन गई हैं। बीते दिनों उन्होंने किर्तीयश सूरी जी महाराज के सानिध्य में अपनी गुरु साध्वी प्रिस्मीता श्रीजी से दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा लेने के बाद देवांशी संघवी को साध्वी प्रिसमीता श्रीजी ने साध्वी श्री दिंगत प्रज्ञा श्रीजी नाम दिया। आपको बता दे, बीते मंगलवार को जैन धर्म के दीक्षा कार्यक्रम में देवांशी ने दीक्षा ग्रहण की।

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, हीरा कारोबारी की बेटी देवांशी संघवी ने 367 दीक्षा इवेंट्स में भाग लिया और इसके बाद वह संन्यास धारण करने के प्रति प्रेरित हुई। देवांशी की माता अमी संघवी भी धार्मिक प्रवृति की हैं। उसी हिसाब से उन्होंने अपनी बड़ी बेटी देवांशी को धार्मिक संस्कार दिए हैं।

सूरत के वेसु इलाके में हुए इस दीक्षा समारोह में करीबन 35 हजार सामाजिक लोगों की मौजूदगी में दीक्षा की विधि पूरी की गई। इससे पहले देवांशी की शोभा यात्रा निकली गई, जिसमें हाथी-घोड़ा और बैंड बाजे के साथ लोग शामिल हुए। बता दे, संयम मार्ग चुनने से पहले देवांशी अपने गुरु के साथ करीबन 600 किमी की पदयात्रा भी कर चुकी हैं।
संगीत, भरतनाट्यम और स्केटिंग में एक्सपर्ट हैं देवांशी!
आपको बता दे, धनेश संघवी की दो बेटियां हैं, जिसमें चार साल की काव्या और आठ साल की देवांशी है। देवांशी 5 भाषाओं की जानकार है। वह संगीत, स्केटिंग, मेंटल मैथ्स और भरतनाट्यम में एक्सपर्ट है। देवांशी को वैराग्य शतक और तत्वार्थ के अध्याय जैसे महाग्रंथ कंठस्थ हैं।

देवांशी के माता-पिता अमी बेन धनेश भाई संघवी ने बताया कि उनकी बेटी ने कभी टीवी देखा नहीं, जैन धर्म में प्रतिबंधित चीजों को कभी इस्तेमाल नहीं किया। न ही कभी भी अक्षर लिखे हुए कपड़े पहने। देवांशी ने न केवल धार्मिक शिक्षा में, बल्कि क्विज में गोल्ड मेडल अर्जित किया। भरतनाट्यम, योगा में भी वह प्रवीण है।
4 महीने की उम्र में त्याग दिया था रात का खाना!

धनेश भाई संघवी ने बताया कि देवांशी जब 25 दिन की थी तब से नवकारसी का पच्चखाण लेना शुरू किया। 4 महीने की थी तब से रात्रि भोजन का त्याग कर दिया था। 8 महीने की थी तो रोज त्रिकाल पूजन की शुरुआत की। 1 साल की हुई तब से रोजाना नवकार मंत्र का जाप किया। 2 साल 1 माह से गुरुओं से धार्मिक शिक्षा लेनी शुरू की और 4 साल 3 माह की उम्र से गुरुओं के साथ रहना शुरू कर दिया था।
आलीशान जिंदगी का त्याग, करोड़ों की संपत्ति ठुकराई!
आपको बता दे, राज्य की सबसे पुरानी हीरा बनाने वाली कंपनियों में से एक संघवी एंड संस के पितामह कहे जाने वाले मोहन संघवी के इकलौते बेटे धनेश संघवी की बेटी हैं। देवांशी के पिता धनेश सांघवी राजस्थान के सिरोही जिले के मालगांव के रहने वाले हैं। और यह घराना बता दें कि धनेश संघवी जिस हीरा कंपनी के मालिक हैं, उसकी दुनियाभर में शाखाएं हैं और साला टर्नओवर करीब सौ करोड़ का है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, हीरा कारोबारी धनेश और उनका परिवार भले ही काफी धनी क्यों न हो, मगर उनकी लाइफस्टाइल काफी सरल और सादा रही है. यह परिवार शुरू से ही धार्मिक रहा है और देवांशी भी बचपन से ही दिन में तीन बार प्रार्थना करने का नियम पालन करती रही हैं।