164 लोगों का परिवार एक साथ जीता है खुशहाल जिंदगी, हर महीने 3 लाख लगता है राशन!

आपने एक एक फैमिली में ज्यादा से ज्यादा कितने फैमिली मेंबर को देखा...10…20…50? लेकिन आज हम आपको जिस परिवार से मिलवाने जा रहे है, बंहा 1-2 छोड़िये सीधे 164 सदस्य हैं। जी हां आपने सही पढ़ा, फैमिली एक लेकिन सदस्यों की संख्या 164, और बह भी 50 कमरों के घर में एक साथ रहते है। खास बात यह है कि इनकी रसोई भी एक ही है, जिस पर हर माह लगभग 3 लाख रूपये का राशन खर्च हो जाता है। तो आइये बिना देर किये... आपका इस परिवार से परिचय कराते हैं।
50 कमरों का घर, 164 लोगों का परिवार!
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट अनुसार, राजस्थान के नागौर के पांचौड़ी की सूरजाराम की ढाणी में रहने वाला दुर्गाराम प्रजापत का परिवार कोई आम परिवार नहीं, बल्कि खासम-खास परिवार है। और इसकी खासियत है इसका संयुक्त होना। चूँकि दुर्गाराम का 6 भाइयों का परिवार है। परिवार में 6 भाइयों की पत्नी के अलावा 30 बेटे और उनकी पत्नियां, 15 बेटियां, 46 पोते, 26 पोतियां और 4 पोते की बहुएं हैं। इनमे से 14 बेटियां और 2 पोती शादीशुदा हैं।

और इनसबमे ख़ास बात ये है कि यह पूरा संयुक्त परिवार 50 कमरों के घर में एक साथ रहते है। वंही पुरे परिवार का खाना भी एक ही रसोई में एक साथ बनता है। रिपोर्ट के मुताबिक अगर सभी सदस्य घर में मौजूद हों तो एक समय में 30 किलो की सब्जी बनती है, और साथ ही 60 किलो आटे की रोटियां बनाई जाती हैं।
हर महीने 3 लाख लगता है राशन!
अब चूंकि परिवार बड़ा है तो खाना बनाना भी किसी टास्क से कम नहीं है। इसके लिए भी परिवार ने पूरा मैनेजमेंट बना रखा है, कंहा कितना खर्च होगा इस बात का कोई लिखित हिसाब तो नहीं लेकिन पारिवारिक सदस्यों के कहे अनुसार, अंदाजा लगा सकते है कि एक सामान्य आदमी सालभर में जितना कमाता है, उतना तो सिर्फ एक महीने के राशन पर खर्च हो जाता है… करीब 3 लाख रुपए।

कभी कुछ समय काम में सिलसिले में बाहर गए हों तो 5-10 किलो का फर्क पड़ता है, उससे ज्यादा नहीं। वंही इस पुरे परिवार की रसोई जिम्मेदारी घर की 17 महिलाओं के कंधो पर होती है। इनका काम भी बांटा हुआ है, कुछ महिलाओ के पास आटा गूथना, रोटी बनाने की जिम्मेदारी तो कुछ महिलाओ के पास सब्जी काटने की जिम्मेदारी है तो कुछ के पास सब्जी बनाने की।
85 गाय-भैंस और बकरियां!
आपको बता दे, सामान्य सी बात है कि परिवार इतना बड़ा है तो राशन, दूध-दही, घी सबकी जरूरत भी बड़ी संख्या में पड़ती ही होगी। ऐसे में परिवार दूध-दही के लिए बाजार पर निर्भर नहीं रहता, बल्कि परिवार में मौजूद 20 भैंस, 15 गाय और 50 बकरियों से अपनी डेयरी सम्बंधित जरूरतों को पूरा कर लेता है। इनसे मिलने वाले दूध का ज्यादातर हिस्सा परिवार में ही यूज हो जाता है।

अगर बात करे ईंधन की तो परिवार ने रसोई भी सामान्य से बड़ी ही बनवाई। वंही परिवार में हर महीने 8 गैस सिलेंडर की खपत है। बर्तन भी बड़े परिवार को ध्यान में रखते हुए खरीदे। चाय बनानी हो तो छोटी पतीले नहीं, बड़े टोप में बनाई जाती है। आटा गूंथने के लिए शादियों में इस्तेमाल होने वाली बड़ी परात है।
इसके अलावा भी परिवार ने पानी के लिए भी घर में ही कुआं खोद रखा है, साथ ही पानी स्टोरेज के लिए कई बड़े टैंक भी बना रखे है। अब तो आप समझ ही गए होंगे कि भाई कुछ भी कहो ये परिवार भारत के अन्य एकाकी परिवारों से अलग व खुशहाल जिंदगी जी रहे है। और आज भी मिलजुलकर एक दूसरे का सहारा बन रहे है। यह भी एक ख़ुशी की बात है।