भारत में जन्मीं बुलबुल-ए-पाकिस्तान का निधन, बंटवारे के 10 साल बाद चली गई थीं पाकिस्तान!

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भारत में जन्मीं मेलोडी क्वीन ऑफ पाकिस्तान गायिका नय्यारा नूर का निधन हो गया है। वह 71 वर्ष की थी। नय्यारा के फैन्स न सिर्फ पाकिस्तान में बल्कि भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया में मौजूद हैं। नय्यारा के निधन की खबर सामने आते ही उनके फैन्स के बीच शोक की लहर दौड़ गई है और उन्हें सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि देने का सिलसिला जारी है। तो आइये हम आपको बताते है, हिंदुस्तान की सरजमीं पर पैदा हुई नय्यारा कैसे बन गई बुलबुल-ए-पाकिस्तान?

बुलबुल-ए-पाकिस्तान का निधन!

नय्यारा के निधन की खबर उनके भतीजे ने सोशल मीडिया पर शेयर की है। रजा ने ट्वीट कर लिखा, "मुझे यह बताते हुए बेहद दुख हो रहा है कि मेरी प्यारी ताई नय्यारा नूर इस दुनिया में नहीं रही हैं। उन्हें सुरीली आवाज के लिए बुलबुल-ए-पाकिस्तान का टाइटल दिया गया था।" 


मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नय्यारा कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रही थीं। वह किस बीमारी से ग्रस्त थीं, इसका तत्काल पता नहीं चल सका है। शाहबाज शरीफ ने ट्वीट करके अपने शोक संदेश में कहा कि उनका निधन संगीत की दुनिया के लिए एक अपूरणीय क्षति है। यह खबर सुनने के बाद कई पाकिस्तानी नागरिकों ने उन्हें सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि दी है।

बंटवारे के 10 साल बाद चली गई थीं पाकिस्तान!

नय्यारा नूर का जन्म 3 नवंबर 1950 को असम के गुवाहाटी में हुआ था। बंटवारे के करीब 10 साल बाद 1957-58 में नय्यारा अपनी मां और भाई-बहनों के साथ पाकिस्तान चली गई थीं। उनके पिता 1993 तक असम में ही रहे। नय्यारा के पिता एक बिजनेसमैन थे, नूर के पिता अपने बजनेस को बढ़ाने के लिए  परिवार के साथ अमृतसर से आकर असम में ही बस गए थे। 

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इसके अलावा नय्यारा के पिता 'ऑल इंडिया मुस्लिम लीग' के सक्रिय सदस्यों में से एक भी थे। और उनके पिता ने 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे से पहले पाकिस्तान के कायदे आजम मुहम्मद अली जिन्ना के असम दौर की मेजबानी की थी। 

नहीं ली थी गायकी की औपचारिक प्रशिक्षण!

नय्यारा नूर को बचपन से ही गाने का बड़ा शौक था। BBC की एक रिपोर्ट अनुसार, अपने एक इंटरव्यू में नय्यारा ने बताया था कि, "कि उनका बचपन असम में बीता, जहां उनके घर के पास लड़कियां सुबह घंटी बजाती थीं, भजन गाती थीं और उससे वो मंत्रमुग्ध हो जाती थीं। मैं अपने आप को रोक नहीं पाती थी, जब तक वो वहां से चली नहीं जाती थीं तब तक मैं वहीं बैठ कर उनको सुनती रहती थी।''

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Image Source: BBC News

बंटवारे के कुछ सालों के बाद उनका परिवार पाकिस्तान आ गया। जंहा पाकिस्तान एनसीए में कंसर्ट होते थे और बड़े उस्ताद उन कंसर्ट्स में आते थे। एक बार प्रोफ़ेसर इसरार को थोड़ी देर हो गई थी, तो मेरे सहपाठियों ने कहा कि जब तक वो नहीं आते तब तक तुम गाओ। 

जब मैं गाने के बाद नीचे आई, तो प्रोफ़ेसर ने मुझसे कहा कि मैं तुमसे यह कहने आया हूं कि तुम बहुत अच्छा गाती हो और आप इस कला को बर्बाद मत करो। वो ही हैं जो पहले मुझे रेडियो पर लाये और जो सबसे पहली ग़ज़ल मैंने गाई थी वह रेडियो पर ही गाई थी। 

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Image Source: Zee News

आपको बता दे, नय्यका शुरू से ही भजन गायिका कानन देवी और ग़ज़ल गायिका बेगम अख़्तर के गानों को खूब पसंद किया करती थीं। लेकिन नय्यारा ने गायकी में  किसी तरह का को औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था। कहा जाता है सिंगिंग की दुनिया में उनका कदम महज एक इत्तेफाक था। लेकिन इनसबके बाबजूद पाकिस्तान में उनकी गिनती अच्छे पार्श्वगायकों में होती थी।

नय्यरा को मिले कई राष्ट्रीय पुरुष्कार!

नय्यारा को पाकिस्तान में लोग उन्हें सुरों की मलिका कहते थे। उन्होंने गालिब और फैज़ अहमद फैज़ जैसे प्रसिद्ध कवियों द्वारा लिखी गई गजलें गाई हैं। इतना ही नहीं, नूर ने मेहदी हसन और अहमद रुश्दी जैसे दिग्गजों के साथ भी परफॉर्म किया था। दिग्गज गायिका नय्यरा नूर को कई राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया गया था। 


उन्हें साल 2006 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस अवार्ड के साथ-साथ बुलबुल-ए-पाकिस्तान की उपाधि से सम्मानित किया गया था। नूर को 1973 में निगार पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। नायरा ने फिर सावन की 'रुत चली', 'ए इश्क हमें बर्बाद न कर' और 'कभी हम भी खूबसूरत थे' जैसे कई फेमस सॉन्ग गाए। 


आपको बता दे, उनके परिवार में पति शेयरयार जैदी और दो बेटे हैं। नायरा का छोटा बेटा जफर जैदी म्यूजिक बैंड काविश के वोकलिस्ट हैं। अपने सिंगिंग करियर में उन्होंने गजल, गीत, नज्म और पाकिस्तान के राष्ट्रीय गीतों को आवाज दी। 70 के दशक से गायकी की शुरुआत करके 2012 में नायरा ने सिंगिंग वर्ल्ड को ऑफिशियली अलविदा कह दिया था।