जानिए, उस KGF खदान की सच्ची कहानी जिस पर बनी है फिल्म, 121 सालों में निकला 900 टन सोना!

साल 2018 में KGF Chapter 1 रिलीज़ हुई थी, जिसे देशभर के दर्शकों ने भरपूर प्यार दिया। वंही 14 अप्रैल 2022 को इस फील का दूसरा चैप्टर (KGF chapter 2) रिलीज होने को तैयार है। एक तरफ फिल्म के ट्रेलर ने यूट्यूब पर तबाही मचा रखी है, वंही दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर फिल्म को लेकर लगातार चर्चाएं हो रही हैं। कि क्या है KGF की असली कहानी? तो आज हम आपको इसी बारे में बताने को लाये है ये स्टोरी। तो चलिए सुरु करते है।
KGF का पूरा नाम क्या है?

फिल्म का नाम KGF है, लेकिन KGF का पूरा नाम कोलार गोल्ड फील्ड्स है। ये कर्नाटक के दक्षिण पूर्व इलाके में स्थित एक जगह है। इस जगह का इतिहास बहुत पुराना और दिलचस्प रहा है। बेंगलुरू के पूर्व में मौजूद बैंगलोर-चेन्नई एक्सप्रेसवे पर 100 किलोमीटर दूर केजीएफ़ टाउनशिप है।
कोलार गोल्ड फील्ड्स का इतिहास!
एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1871 में ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली ने 1804 में एशियाटिक जर्नल में छपे चार पन्नों का एक आर्टिकल पढ़ा था। उसमें कोलार में पाए जाने वाले सोने के बारे में बताया गया था। इस लेख के चलते कोलार में उनकी दिलचस्पी बढ़ गई।

एक दिन लेवेली के हाथों ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन का एक आर्टिकल लगा। जिसमे लिखा था कि 1799 की श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को मारने के बाद कोलार और उसके आसपास के इलाके पर अपना कब्जा जमा लिया था। लेकिन कुछ सालों बाद ब्रिटिश शासकों ने इस जमीन को मैसूर राज्य को दे दिया।
हालांकि कोलार की जमीन को सर्वे के लिए उन्होंने अपने पास ही रख लिया था। इतिहासकारों के मुताबिक चोल साम्राज्य के लोग उस वक्त कोलार की जमीन में हाथ डालकर वहां से सोना निकाल लेते थे। जब इस बात का पता ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन को चला तो उन्होंने गांव वालों को इनाम का लालच देकर सोना निकलवाने की सोची।
KGF में सोने की तलाश
इसके लिए वॉरेन ने सोने के बारे में उन्हें जानकारी देने वालों को ईनाम देने की घोषणा की। उस घोषणा के कुछ दिन बाद, एक बैलगाड़ी में कुछ ग्रामीण वॉरेन के पास आए। उस बैलगाड़ी में कोलार इलाक़े की मिट्टी लगी हुई थी। ग्रामीणों ने जब उस मिट्टी को पानी से धोया तो उसमें सोने के अंश दिखाई दिए।

वॉरेन ने इसकी फिर पड़ताल शुरू की. वॉरेन को पता चला कि कोलार के लोग जिस तरीक़े से हाथ से खोदकर सोना निकालते हैं, उससे 56 किलो मिट्टी से गुंजभर सोना निकाला जा सकता था। ऐसे में उन्होंने सुझाया कि तकनीक की मदद से और भी सोना निकाला जा सकता है। वॉरेन की इस रिपोर्ट के बाद, 1804 से 1860 के बीच इस इलाक़े में काफ़ी रिसर्च और सर्वे हुए।
लेकिन अंग्रेजी सरकार को उससे कुछ नहीं मिला। इस रिसर्च के चलते कइयों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी थी। उसके बाद वहां होने वाली खुदाई पर रोक लगा दी गई। लेकिन कई सालों बाद जब ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली ने साल 1871 में वॉरेन का एक लेख पढ़ा तो उनके मन में सोने को पाने का जुनून जाग गया।

लेवेली ने बैलगाड़ी में बैठकर बेंगलुरू से कोलार की 100 किलोमीटर की दूरी तय की। 1873 में मैसूर के महाराजा से खुदाई के लिए अनुमति ली और 1875 में खुदाई शुरू की।
भारत का पहला स्थान जहां बिजली पहुंची
आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि ये काम कितना खौफनाक था। रोशनी के लिए मशालों और लालटेनों का इस्तेमाल किया जाता था। खदान के लिए ये रोशनी पर्याप्त नहीं थी लिहाजा पहले यहां लेवली ने बिजली का इंतजाम करवाया। रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह केजीएफ बिजली पाने वाला भारत का पहला शहर बना।

काफ़ी मुश्किलों के बाद केजीएफ़ से सोना निकालने का काम आख़िरकार शुरू हो गया। मशीनों की मदद से 1902 में 95 फीसदी सोना निकलने लगा। 30 हजार मजदूर खदान में काम करने लगे। लेवली का प्रयोग सफल रहा, खदान सोना उगलने लगी। इसके चलते 1905 में सोने की खुदाई के मामले में भारत दुनिया में छठे स्थान पर पहुंच गया।
केजीएफ बन गया छोटा इंग्लैंड!
वहीं अंग्रेजों को केजीएफ इतना भा गया कि उन्होंने वहां पर घर बनाना शुरू कर दिया। पानी से बिजली बनने के बाद वहां हर वक़्त बिजली मिलने लगी। सोने की खान के चलते बेंगलुरू और मैसूर के बजाय केजीएफ़ को प्राथमिकता मिलने लगी। लोगों को वहां का माहौल बहुत पसंद आने लगा, क्योंकि वो जगह ठंडी थी।

केजीएफ़ में सोना मिलने के बाद वहां की सूरत ही बदल गई। वहां जिस तरह से ब्रिटिश अंदाज़ में घरों का निर्माण हुआ, उससे लगता था कि वो मानो इंग्लैंड ही है। इसके साथ ही डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने केजीएफ के पास तालाब का निर्माण करवाया।
121 सालों में निकला 900 टन सोना!
जब 1947 को भारत आजाद हुआ तो भारत सरकार ने सभी खदानों पर अपना कब्जा कर लिया। और भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड कंपनी काम देखने लगी। शुरू में सब ठीक रहा लेकिन धीरे-धीरे कंपनी की हालत खराब होने लगी। और 1979 तक कंपनी घाटे में चली गई और उनके पास मजदूरों को सैलरी तक देने के पैसे नहीं बचे।

2001 आते-आते खुदाई बंद करने का फैसला ले लिया गया और खुदाई बंद होते ही कोलार गोल्ड फील्ड्स खंडहर में तब्दील हो गए। केजीएफ में खनन 121 सालों से भी ज्यादा समय तक चला। साल 2001 तक वहां खुदाई होती रही। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक, 121 सालों तक इस खान से 900 टन से ज्यादा सोना निकाला जा चुका है। इस हिसाब से अंदाजा लगा सकते हैं कि 900 टन सोना आखिरी कितने का होगा?