जानिए कौन हैं 'कैप्सूल मैन'? जिसने एक कैप्सूल से 65 मजदूरों की जान बचाई, अब बन रही फिल्म!

आनंद एल राय के डायरेक्शन में ‘रक्षा बंधन’ के प्रमोशन के बीच अक्षय कुमार की अपकमिंग फिल्म ‘कैप्सुल गिल’ से अक्षय कुमार का दूसरा लुक लीक हुआ है। इससे पहले अक्षय का एक लुक सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था, जिसके बाद मेकर्स ने उसे बतौर फर्स्ट लुक जारी कर दिया था।
अक्षय कुमार के इस नए लुक को कई फैन पेजों से शेयर किया जा रहा है। इसमें अक्षय पगड़ी पहने हुए और मोटरसाइकिल चला रहे हैं। अक्षय एक रेट्रो बाइक पर बैठे हैं और कैमरे के लिए एक शानदार पोज दे रहे हैं। अक्षय अपनी अपकमिंग फिल्म के लिए देसी अवतार में नजर आ रहे हैं। फिल्म की कहानी एक माइनिंग इंजीनियर जसवंत सिंह गिल के बारे में है, जिन्होंने माइनिंग करने वाले 65 लोगों को काल के गाल से बचाया था। तो आइये जानते है, 'कैप्सूल मैन' की असली कहानी।
अक्षय कुमार निभाएंगे 'कैप्सूल मैन' का किरदार!
अक्षय कुमार साल में चार से पांच फिल्में निपटाते हैं। हाल ही में उनकी 'सम्राट पृथ्वीराज' आई, और अब अगस्त में 'रक्षाबंधन' रिलीज़ हो रही है। इन सबके बीच उनकी एक और फ़िल्म 'कैप्सूल गिल' का फर्स्ट लुक आ गया है। इसमें अक्षय सरदार के गेटअप में नज़र आ रहे हैं। सिर पर पगड़ी और चेहरे पर बड़ी दाढ़ी रखे हुए पीली राजदूत पर सवार। 2016 में आई अक्षय की 'एयरलिफ्ट' की तरह 'कैप्सूल गिल' भी एक रेस्क्यू ड्रामा होने वाली है।
IT'S OFFICIAL... AKSHAY KUMAR - POOJA ENTERTAINMENT REUNITE... #AkshayKumar joins hands with #PoojaEntertainment [#VashuBhagnani] yet again... Filming begins in #London... Directed by #TinuSureshDesai [#Rustom]... #FirstLook... pic.twitter.com/rOb0tIUpd6
— taran adarsh (@taran_adarsh) July 8, 2022
'कैप्सूल गिल' में एक नए अंदाज में नजर आ रहे अक्षय कुमार का हालिया लुक काफी चर्चा में है। अक्षय कुमार फिल्म में जसवंत सिंह गिल (Jaswant Singh Gill) का किरदार निभाने वाले हैं, जिन्होंने उन्होंने कोलमाइन की बाढ़ में फंसे 65 लोगों की जान बचाई थी।
कौन हैं जसवंत सिंह गिल?
22 नवंबर, 1937, पंजाब के सठियाला (अमृतसर) में जसवंत सिंह गिल का जन्म हुआ। अमृतसर के खालसा कॉलेज से 1959 में ग्रैजुएट हुए, और फिर कोल इंडिया लिमिटेड में नौकरी शुरू कर दी। यहां काम करने के दौरान उन्होंने कुछ ऐसा कारनामा किया कि 1991 में ‘सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक’ से राष्ट्रपति ने सम्मानित किया। और अमृतसर की मजीठा रोड पर एक चौक का नाम भी उनके नाम पर रखा गया।

दरअसल, 13 नवंबर, 1989 की तारीख। 220 मजदूर रोज़ की तरह अपना काम कर रहे थे। ब्लास्ट के जरिए कोयले की दीवारें तोड़ी जा रही थीं, खदान से कोयला निकाला जा रहा था। सब खुद के काम में व्यस्त थे, उन्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि अगले क्षण उनके साथ कुछ भयानक होने वाला था। अचानक, पानी रिसने लगा और फिर खदान में बाढ़ आ गई।
खदान में बाढ़ आने के बाद चारो तरफ हल्ला मच गया। मजदूर खुद को बचाने के लिए चीखने लगे, तो खदान के ऊपर मौजूद जिम्मेदार अफसर व अन्य लोग उन्हें बचाने में जुट गए। इस दौरान 220 मजदूरों में से सैकड़ो मजदूरों को दो लिफ्टों से बाहर निकाला गया। लेकिन शाफ़्ट में पानी भर जाने की बजह से 71 मजदूर वहीं फंस गए। जिसमे 5 तो डूब गए बाकी बचे 65 अपनी जिंदगी के लिए जद्दोहद करने लग गए।
मजदूरो की जिंदगी बचाने के लिए बनाया गया कैप्सूल!
जब 65 मजदूरों की जिंदगी एक खदान में फंसी हो तो ऊपर बैठे लोग कैसे चैन की सांस ले पाते। ऐसे में सुरु हुआ बचाव अभियान, जिसमे बचाव टीमों का गठन किया गया। एक टीम ने खदान के बराबर सुरंग खोदनी शुरू की। दूसरी टीम उस जगह से माइन के अंदर जाने की कोशिश करने लगी, जहां से पानी जा रहा था।

लेकिन तमाम कोसिसो के बाबजूद, सारे हथकंडे असफल होते जा रहे थे। ऐसे समय में जब सब निराश हो चुके थे, जसवंत गिल को एक आइडिया आया और वो आइडिया था कैप्सूल का। चूँकि जसवंत सिंह कोल इंडिया में इंजीनियर थे तो उन्होंने अंदाजा लगाकर बोरवेल खुदवाना सुरु कर दिया।
गिल का अनुमान एकदम परफेक्ट था। बोरहोल एकदम उसी जगह से जुड़ा हुआ था, जहां पर फंसे हुए मजदूर इकट्ठे हुए थे। सबसे पहले तो बोरवेल के जरिये उन 65 खदान मजदूरों को खाना और पानी पहुंचाया गया ताकि बह खुद को सुरक्षित महसूस कर सके। इसके बाद जल्दी से नया बोरवेल खोदा जाने लगा।

और जब जसवंत गिल के बताये अनुसार, 2.5 मीटर लंबा कैप्सूल बनकर आया और 15 नवंबर की रात आयरन रोप के ज़रिए उसे नीचे भेजने का समय आया तो कोई उस कैप्सूल के साथ जाने को तैयार नहीं हुआ। ऐसे में मौके की नजाकत को समझते हुए और इंसानियत दिखाते हुए जसवंत गिल ने खुद अपने बनाये हुए कैप्सूल के साथ नीचे जाने का मन बनाया।
जसवंत सिंह गिल के पुत्र डॉक्टर सर्वप्रीत सिंह बताते हैं, कि ‘’उन्होंने कैप्सूल अंदर भेजने के लिए एक कुआं खोदा। वहीं पर ढाई मीटर का कैप्सूल बनाया। उसे एक आयरन रोप से अटैच किया और क्रेन से उसे नीचे उतार दिया।"

जसवंत गिल जब कैप्सूल के सहारे नीचे उतर गए, तो सभी की साँसे एक दम थम सी गई। बाहर लोग दुआ करने लग गए कि ऑप्रेशन सफल रहे और मजदूरों के साथ-साथ बहादुर जसवंत गिल भी सकुशल लौट आये। वंही जब नीचे पहुंचकर जसवंत गिल ने कैप्सूल का दरवाज़ानुमा हिस्सा खोला तो 65 डरे हुए लोग उनके सामने थे।
कैप्सूल के सहारे एक एक मजदूर की बचाई जिंदगी!
बस फिर क्या था, खदान में नीचे फंसे मजदूरों को बचाने का काम जसवंत गिल ने तुरंत सुरु कर दिया। उन्होंने सबसे क़रीब मौजूद पहले वर्कर को बाहर निकाला, इसके बाद उन मजदूरों को निकालना शुरू किया, जो घायल थे या बीमार पड़ गए थे। ऐसा हर एक बार किया जाने लगा, ऊपर से जसवंत गिल के साथ कैप्सूल नीचे भेजा जाता और नीचे से जसवंत गिल हरवार एक मजदूर की जिंदगी बचाकर उसे सकुशल बापिस लेकर लौटते।

इस प्रकार, जसवंत सिंह गिल ने 16 नवंबर की रात 2:30 बजे सुरु हुए बचाव अभियान में अपने कैप्सूल की मदद से सुबह 8:30 बजे तक सभी मजदूरों को बाहर लाने में सफल रहे। यानी 6 घंटे में गिल साहब ने 65 लोगों के जान बचा ली। बता दें कि इस ऑपरेशन को आज तक का सबसे बड़े कोयला खदान बचाव अभियान में से एक माना जाता है।
भारत सरकार ने दिया ‘सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक’

आपको बता दे, जसवंत सिंह गिल को उनकी अदम्य बहादुरी और जीवन रक्षक कैप्सूल इनोवेशन के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन की तरफ से सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक से सम्मानित किया गया था। वंही कोल इंडिया ने उन्हें ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’ दिया। साथ ही कोल इंडिया ने उनके सम्मान में 16 नवंबर को 'रेस्क्यू डे' डिक्लेयर कर दिया। साल 2019 में देश का ये सुपरहीरो इस दुनिया को छोड़ हमेशा के लिए परलोक चला गया।